मंगलवार, 27 सितंबर 2011

जूता पेल पालबिल की महिमा

आदरणीय अन्ना अंकल,
लोकपाल और जन लोकपाल के झगडे में हमारे मुहल्ले के आंखों के डा. राम औतार का “जूत्तापेल पाल बिल“ दब कर रह गया था. आज उनसे हुए इंटरव्यू से इसके बारे में देश  को बता रहा हूंः
प्र0ः डा. साहब आपके इस “जूत्तापेल पाल बिल“ का अर्थ क्या है?“
उ0ः हर भारतीय इसके नाम का अर्थ समझता है. आप इंग्लैण्ड से आए हैं,क्या?“
प्र0ः माफ करना, आपको इस बिल का विचार कहां से सूझा?
उ0ःमैं आंखों की दवा के लिए जडीद्दबूटियां खोजने एक गांव गया हुआ था, तभी इस बिल के बारे में ज्ञान हुआ.
प्र0ः बहुत खूब. ज़रा बतायेंगे,कैसे?
उ0; एक नौजवान की नज़र इतनी कमज़ोर हो गई थी कि उसे हर बहू-बेटी अपनी घरवाली दिखने लगी.इस बिल का प्रयोग होते ही नज़र इतनी तेज हो गई कि वही बहू-बेटियां उसे मां-बहन दिखने लगी.
प्र0ः कमाल है. वैसे इसे लागू करने वाला लोकपाल कौन होता है?
उ0ः गांव का कोई भी आदमी जिसके चेहरे पर मूंछ और पांव में जूत्ता हो,इसका लोकपाल हो सकता है.
प्र0ः क्या यह खर्चीला बिल है?
उ0ः बिल्कुल नहीं. दुनिया का सबसे किफायती और टिकाऊ बिल यही है.इसमें किसी पुलिस या अदालत की भी ज़रूरत नहीं होती.
प्र0ःइसके खिलाफ कहीं अपील की जा सकती है?
उ0ः जरूरत ही नहीं पडती,हालांकि यह “नो अपील,नो वकील,नो दलील“ पर आधारित है.सच कहूं तो यह बिल इतना प्यारा है कि जिस पर लागू होता है,वह दुनियादारी भूलकर परमात्मा का कीर्तन करने लगता है.
प्र0ःयह कहां-कहां लागू होता है?
उ0ः सिर्फ गांवों में. शहर के वे इलाके जहां गांव से आ बसे लोगों की संख्या ज्यादा है, वहंा अभी भी इस बिल के प्रति श्रद्धा देखी जा सकती है.
प्र0ः जो गांव वाले कई साल पहले शहर  आ गए थे,वो लोग...?
उ0ः उनका विष्वास इस बिल के बच्चे “जूत्ताउछाल पाल“ में है.इसमें जूत्ता मारा भी नहीं जाता और लग भी जाता है.
प्र0ः क्या?बिल का बच्चा? यानि,कुछ कमज़ोर..?
उ0ः हर्गिज़ नहीं, आखिर बच्चा भी किसका है?बस इतनी कमी है कि जूत्ता वापिस नहीं मिलता. ऐसे में दूसरा जूत्ता हाथ में लेकर नंगे पांव वापिस आना पडता है.
प्र0ः शहर के लोगों..?
उ0ः उनका बिल “कमज़ोरपाल बिल“ है,जिस पर कल चर्चा करेंगे. आज्ञा दें.जयहिंद
                                                                         आपका बच्चा ,
                                                                         मन का सच्चा 
                                                                         अकल का कच्चा 
                                                                         प्रदीप नील 


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