मंगलवार, 27 सितंबर 2011

सोना ? सरकार का या कुँभकरण का ?

आदरणीय अन्ना अंकल,
हमारी कक्षा में एक लडकी पूछने लगी,“सर,सोने का  विशेषण क्या होता है?“
सर जी ने दो जवान बेटियों की शादी करनी है, 10-10 तोले सोना तो देना ही होगा.इधर सोने का भाव छंलागें मार रहा है. उसी चिंता में खोए हुए होंगे. बोले,“बिटिया,सोने का विशेषण  क्या पूछती हो, आजकल तो इसका भाव पूछो,भाव.“
सर जी जिस अखबार में सोने का भाव देखते हैं,वही अखबार लडकी भी पढती है. उसी अखबार में ब्यूटी-पार्लर के नाम पर देह-व्यापार के विज्ञापन भी छपते हैं,जहां हर चीज़ के रेट भी लिखे रहते हैं. लडकी को बहुत शर्म आई लेकिन इतना ज़रूर बोला,“छिः सर, मुझे नहीं पता था आप टीचर होकर भी इतना गंदा सोचते हैं.“
सर चश्मा  पोंछते हुए बोले,“इसमें टीचर क्या करेगा,बेटा?ठीक है अपने बेटे के समय दहेज़ नहीं लूंगा.लेकिन बेटियों को तो सोना...“
लडकी तुरंत समझ गई. बोली,“सारी सर, अब सोने का विशेषण  बता ही दीजिए.“
सर मुस्कुरा कर बोले,“ सुनहरा“
लडकी बोली,“यह तो मैं भी जानती हूं,सर .मैं उस सोने का नहीं बल्कि कुंभकर्ण वाले सोने का  विशेषण  पूछ रही थी.“
सर फिर उलझ गए.इस सोने का  विशेषण  उन्हे नहीं पता.उन्होने ईमानदारी से स्वीकार भी कर लिया कि नहीं जानते. हां,किसी से पूछ कर बतायेंगे.
लडकी भी जानती है कि टीचर होने का मतलब यह नहीं होता कि उसे सब कुछ आता हो. वह मुस्कुरा कर बोली,“ठीक है,सर जी“
आजकल लोकपाल बिल पर भी यही हो रहा है, अंकल जी. आप सो रहे कुंभकर्ण वाले सोने से चिंतित हैं,जबकि सरकार रोजाना  चढ्ते जा रहे मंहगे सोने से. सरकार को जब आप वाले सोने का  विशेषण  पता चलेगा, आप को बता देगी.लेकिन तब और मंहगे हो चुके सोने का भाव जानकर आप दंग मत रह जाना.
सोना नींद उडाता ही है.वह चाहे दहेज़ वाला हो या कुंभकर्ण वाला
                                                             आपका अपना बच्चा
                                                             मन का सच्चा
                                                             अकल का कच्चा
                                                             - प्रदीप नील


जन लोकपाल बिल और राम ओतार का लोटा

आदरणीय अन्ना अंकल,
लोग बेशक  कहते हों कि आप मराठा हैं,लेकिन मुझे तो आप असली हरियाणवी ही लगते हैं.बता ही देता हूं,क्यों?
हमारे पडौसी राम औतार के यहां चोरी हो गई.तफ्तीश  पर आये थानेदार ने पूछा“क्या क्या चोरी हुआ?“
राम औतार ने कहा”लोटा “
थानेदार का अगला प्रशन आना ही था,“लोटा,और..?“
राम औतार ने उसे बेवकूफ समझ्कर गुस्से से घूरा और बोला,“पहले लोटा तो ढूंढ ला.“
अंकल जी, आप भी राम औतार के लोटे की तरह जनलोकपाल बिल पर ही अटक कर खडे हो गए.
 थानेदार घर आया हुआ था. राम औतार लोटे के चक्कर में ऐसा उलझा कि यह बताना तो भूल ही गया कि उसके यहां से दस तोले सोने की चेन और दो लाख की नकदी भी चोरी हुई है.
अंकल जी, आपके पास तो इतने थानेदार आये  थे,राम लीला मैदान में ! आप चाहते तो कह सकते थे कि लोटा तो खोज ही लाओ लेकिन हमारी संस्क्रिती,सभ्यता जैसी दस तोले की चेन खोजना मत भूल जाना. महाजन के सूद की तरह बढ रही आबादी और इसके कारण फैली 300 तरह की बीमारियां(यहां तक कि भ्रष्टाचार  भी उन्ही में से एक है) के इलाज़ की दस तोले की चेन, अन्ना, अंकल !
अंकल जी,कन्या-भ्रूण  हत्या,दहेज-प्रथा,प्रदूषण , आनर-किलिंग,मिलावटी व नकली चीजों के उत्पादन इत्यादि रोकने की जो दो लाख की नकदी गुम है, आप वो भी गिना सकते थे.लेकिन आप लोटे के इलावा किसी बात को याद ही नहीं कर पाए.
वैसे अंकल जी, राम औतार के यहां से थानेदार चलने लगा तो उसकी पत्नी राम दुलारी ने चेन तथा चोरी की बात भी कानों में से निकाल दी थी. आपके पास भी किरण और अरविंद जैसे समझदार भाई बहन तो थे ही,वे ही गिना देते कि जो समाज की,देश  की जो चेन और नकदी गुम हुई है,वह भी खोज ही लेना.
अंकल जी,एक बार ,सिर्फ एक बार कह देते कि नेताओं पर निगाह तो मैं रख लूंगा,तुम भी घर जाकर खुद पर और अपने परिवार पर निगाह रख लेना.
मैं तो यही दुआ कर रहा हूं कि राम औतार के यहां फिर से चोरी हो जाए और इस बार राम दुलारी नहीं बल्कि,राम औतार खुद चेन तथा नकदी की बात करे. 
                                                                                       आपका अपना बच्चा
                                                                                       मन का सच्चा
                                                                                        अकल का कच्चा
                                                                                      - प्रदीप नील

स्तन दो ,बच्चे तीन

 आदरणीय अन्ना अंकल,
देश  के नेताओं को भी कहना कि ज़रा  सोच कर बोला करें.
   परसों ही एक नेता ने बोल दिया कि अपने देश  की आबादी बहुत तेज रफ्तार से बढ रही है और इसे यूं समझो कि हर साल एक आस्ट्रेलिया भारत में आ जुडता है.
   अंकल जी, आबादी की रफ्तार वाली बात पर तो किसी ने ध्यान नहीं दिया ,लेकिन आस्ट्रेलिया आने की खबर जंगल की आग की तरह फैल गई. राम औतार तब से शहर की गलियां छान रहा है कि आस्ट्रेलिया आया है तो गोरी मेमें भी आई होंगी.सारा दिन गालियां देने वाली काली-कलूटी राम दुलारी को तलाक देकर अंगरेज़ी में लव यू,लव यू करने वाली किसी मेम से ही ब्याह करा लूं.
अंकल जी,तब से मैं भी सोच रहा हूं कि आस्ट्रेलिया आया है तो कम भीड वाली बसें,साफ -सुथरे स्कूल,सड़क पर न थूकने वाले सभ्य और शिक्षित  बच्चे भी आये होंगे.साथ में गरीबी दूर करने को डालर. अब तो मेरा बचपन ही संवर जाएगा.                                                                                                                                                 अंकल जी, आस्ट्रेलिया यहां आए दो दिन हो गए लेकिन,देश की तस्वीर तो पहले से भी बदतर दिख रही है.चारों तरफ भीड ही भीड,यहां तक कि शहर के पेशाब घरों तक पर भी लाईन. और वह भी तब जब कुछ बहादुर लोग वहां भी उकडू हो जाते हैं,जहां लिखा होता है,”गधे के पूत,यहां मत ...“
   यही तो गलत बात की,नेता ने. अरे कह देते कि हर साल तो दूर आस्ट्रेलिया एक बार भी भारत नहीं आया और न ही कभी आयेगा.नेता जी को कहना चाहिए था,“ सावधान, दक्षिणी अफ्रीका या ब्राज़ील आ रहा है.और वह इसलिए आ रहा है कि वहां ज़्यादा आबादी के कारण खाने को नहीं मिल रहा.“
   वैसे, अंकल जी, अपने देश  की आबादी बढने की रफ्तार एक दिन आपके मुंह से भी कहला ही देगी कि देश  की बदहाली की ज़िम्मेवार वही नालायक औरत है जो पहले एक सैंकिंड में एक बच्चा दिया करती, अब दो देने लगी है.और थोड़े ही दिनों में तीन  भी देने लगेगी 
परमात्मा ने हर माता को स्तन भी दो ही दिए हैं.दो बच्चों को तो वह दूध पिला देगी लेकिन जब तीसरा आयेगा और उसे दूध नहीं मिलेगा तो वह इसके लिए कोई भ्रष्ट  तरीका ही खोजेगा.
अंकल जी,बच्चा बडा होकर भ्रष्टाचार  सीखता है तभी देश  का यह हाल है.क्या होगा अगर वह पैदा होते ही सीख लेगा. 
मां के दूध से शुरू हुआ भ्रष्टाचार कहां तक जाएगा,इतना तो आप भी जानते हैं. तभी तो कहता हूं कि अपने देश  के नेताओं को भी कहना कि जरा  सोच कर बोला करें.
                                                                आपका अपना बच्चा
                                                                मन का सच्चा
                                                                अकल का कच्चा
                                                                 - प्रदीप नील

 आदरणीय अन्ना अंकल,
हमारी गली का राम औतार अपना काला धन जब्त कराने के लिए अनशन कर रहा है,लेकिन सरकार है कि इसे काला धन ही नहीं मान रही.
राम औतार ने परसों गली के चौक पर स्टेज़ बनाई,लाऊड-स्पीकर लगाया और इस पर अपने अनशन की घोषणा  करते हुए सरकार के खिलाफ भाषण  शुरू कर दिया. तमाशा  देखने वालों को अपना समर्थक समझकर जोश  में भर गए और बोले कि  जब तक उनका काला-धन जब्त नहीं किया जायेगा,वे प्राण त्याग देंगे लेकिन हटेंगे नहीं.
मरे से मरे भारतीय के घर भी 5-7 तोले सोना और आधा किलो चांदी दबी ही रहती है.लोग डरे कि खुद भी मरेगा और हमें भी मरवायेगा.यह यहां से हटे तो उनका भी पिण्ड छूटे. बस किसी ने खबरिया चैनल को फोन कर दिया.चैनल वालों के पास कोई धमाकेदार न्यूज़ नहीं थी,सो बेचारों ने छतरी की तरह राम औतार पर कैमरा तान दिया.और एंकर चिल्लाने लगा,“धन्य है यह देशभक्त जिसका विवेक जागा और अपना काला धन सौंपने को तैयार है. सरकार कब तक छुप कर तमाशा  देखेगी?उसे आना ही पडेगा,इसी ज़गह,इसी चौक में....“
हार कर पुलिस-कप्तान को आना पडा.उन्हे लेकर राम औतार अपने घर की और चले. पीछे उनके समर्थकों की भीड. राम औतार के घर के आंगन में उनकी पत्नी खडी थी,मोटी और काले रंग की. राम औतार ने उसकी तरफ इशारा करते हुए हुए कहा,“ यही है मेरा काला धन.जब्त कर लो इसे.“
कप्तान साहब का जी तो किया होगा कि इसे अभी एक झन्नाटेदार थप्पड दूं,लेकिन कैमरे के सामने यही कहा,“यह आपकी पत्नी है,बडे भाई. यह काली तो है लेकिन...“
राम औतार उन्हे समझाने लगे,“देखिए,शास्त्रों मे धन को लक्ष्मी कहा गया है,यह काली है तो काला धन हुआ कि नहीं?इसका नाम तो लक्ष्मी है ही,इसके बाप से मैंने मोटा धन दहेज़ के रूप में यानि दो नंबर में लिया था. अब बताओ,यह किस हिसाब से काला-धन नहीं है?“
कप्तान साहब ने हाथ जोडे,“भाई साहब, काली औरतों को जब्त करने का कोई कानून नहीं है,ना ही कोई बिल.“
राम औतार अडे हुए हैं कि बिल नहीं है तोअब  बना लो,चारों तरफ इतने बिल बन रहे हैं ,एक और सही ..
अंकल आप जूस पिला दें तो राम औतार अनशन तोड सकते हैं. ज़रा जल्दी आना क्योंकि टी वी वाले बहुत बोर कर रहे हैं, उन्होंने राम औतार के नाम पूरी स्क्रीन की रजिस्ट्री करा रखी है 
                                                                                         आपका अपना बच्चा 
                                                                                          मन का सच्चा 
                                                                                          अकल का कच्चा
                                                                                           प्रदीप नील 



जूता पेल पालबिल की महिमा

आदरणीय अन्ना अंकल,
लोकपाल और जन लोकपाल के झगडे में हमारे मुहल्ले के आंखों के डा. राम औतार का “जूत्तापेल पाल बिल“ दब कर रह गया था. आज उनसे हुए इंटरव्यू से इसके बारे में देश  को बता रहा हूंः
प्र0ः डा. साहब आपके इस “जूत्तापेल पाल बिल“ का अर्थ क्या है?“
उ0ः हर भारतीय इसके नाम का अर्थ समझता है. आप इंग्लैण्ड से आए हैं,क्या?“
प्र0ः माफ करना, आपको इस बिल का विचार कहां से सूझा?
उ0ःमैं आंखों की दवा के लिए जडीद्दबूटियां खोजने एक गांव गया हुआ था, तभी इस बिल के बारे में ज्ञान हुआ.
प्र0ः बहुत खूब. ज़रा बतायेंगे,कैसे?
उ0; एक नौजवान की नज़र इतनी कमज़ोर हो गई थी कि उसे हर बहू-बेटी अपनी घरवाली दिखने लगी.इस बिल का प्रयोग होते ही नज़र इतनी तेज हो गई कि वही बहू-बेटियां उसे मां-बहन दिखने लगी.
प्र0ः कमाल है. वैसे इसे लागू करने वाला लोकपाल कौन होता है?
उ0ः गांव का कोई भी आदमी जिसके चेहरे पर मूंछ और पांव में जूत्ता हो,इसका लोकपाल हो सकता है.
प्र0ः क्या यह खर्चीला बिल है?
उ0ः बिल्कुल नहीं. दुनिया का सबसे किफायती और टिकाऊ बिल यही है.इसमें किसी पुलिस या अदालत की भी ज़रूरत नहीं होती.
प्र0ःइसके खिलाफ कहीं अपील की जा सकती है?
उ0ः जरूरत ही नहीं पडती,हालांकि यह “नो अपील,नो वकील,नो दलील“ पर आधारित है.सच कहूं तो यह बिल इतना प्यारा है कि जिस पर लागू होता है,वह दुनियादारी भूलकर परमात्मा का कीर्तन करने लगता है.
प्र0ःयह कहां-कहां लागू होता है?
उ0ः सिर्फ गांवों में. शहर के वे इलाके जहां गांव से आ बसे लोगों की संख्या ज्यादा है, वहंा अभी भी इस बिल के प्रति श्रद्धा देखी जा सकती है.
प्र0ः जो गांव वाले कई साल पहले शहर  आ गए थे,वो लोग...?
उ0ः उनका विष्वास इस बिल के बच्चे “जूत्ताउछाल पाल“ में है.इसमें जूत्ता मारा भी नहीं जाता और लग भी जाता है.
प्र0ः क्या?बिल का बच्चा? यानि,कुछ कमज़ोर..?
उ0ः हर्गिज़ नहीं, आखिर बच्चा भी किसका है?बस इतनी कमी है कि जूत्ता वापिस नहीं मिलता. ऐसे में दूसरा जूत्ता हाथ में लेकर नंगे पांव वापिस आना पडता है.
प्र0ः शहर के लोगों..?
उ0ः उनका बिल “कमज़ोरपाल बिल“ है,जिस पर कल चर्चा करेंगे. आज्ञा दें.जयहिंद
                                                                         आपका बच्चा ,
                                                                         मन का सच्चा 
                                                                         अकल का कच्चा 
                                                                         प्रदीप नील 


सोमवार, 26 सितंबर 2011

कुंवारों का घोषणा -पत्र

 आदरणीय अन्ना अंकल,
    हमारे पडोसी अंकल राम ओतार ने  मुझे कल ही चौक में  पीटा और वह भी ,चप्पलों से.
    असल में  नंगे-भूखे आठ बच्चों के पिता राम ओतार ‘शराब में धुत होकर सरकार को कोस रहे थे कि ज़ालिम सरकार उनके बच्चों की ‘शिक्षा ,भोजन और वस्त्र के लिए कुछ नहीं कर रही.मैं समझदार होता तो बडे लोगों की तरह घर बैठा मुस्कुराता रहता लेकिन मैं ठहरा नादान बालक.मैंने उनको तसल्ली देते हुए कहा“ठीक कर रहे हो अंकल, आप. भला यह क्या बात हुई कि आपके यहां आठ बच्चे पैदा तो करे सरकार और उन्हे पालें आप ?
   राम ओतार  अंकल थोडा ‘शरमाए और मेरी भूल सुधारते हुए बोले“बच्चे तो मैंने ही पैदा किए हैं,सरकार ने नहीं“
  मुझसे एक गलती और हो गई, पूछ बैठा“ तो क्या हुआ?आपने बच्चे तो सरकार से पूछ कर ही पैदा किए होंगे ?
उनका न‘शा  थोडा उतरा,बोले“नहीं, इसमें पूछना कैसा?“फिर अचानक उन्हे लगा कि मैं उनका हितेषी नहीं बल्कि सरकार का चमचा हूं अतः यह सरकार बदलनी ही चाहिए क्योंकि यह सरकार  निकम्मी है.
   आम तौर पर मैं इस बहस में नहीं पडता कि सरकार कैसी है पर मेरी कुंडली में पिटने के प्रबल योग बने हुए थे,इसलिए कह बैठा“हाँ , सरकार तो निकम्मी है ही,जो बच्चों की फीस के पैसों की दारू पीने वालों को जूत्ते नहीं मारती“
मेरे इस बैया-वाक्य से राम ओतार-बंदर अंकल को वही ‘शिक्षा मिली जो आम तौर पर औसत भारतीय को मिला करती है और उन्होने वही किया जिसके लिए पूरे विश्व में हमारे नाम के झण्डे गडे हैं और उन्होने चौक में मुझे चप्पलों से पीटा.
  अंकल जी , देश  की कुल आबादी के 19 प्रति‘शत यानि लगभग २४ करोड़    युवक  इस साल ‘शादी करने लायक हो जायेंगे. मैं नहीं चाहता कि पांच-सात बाद मेरे जैसा कोई बालक उनसे पिटे. इसलिए उन कुंवारों के लिए यह ‘शपथ-पत्र बना रहा हूं ताकि वक्त पर काम आएः
     "मैं फलाना सिंह वल्द धमकाना सिंह पूरे हो‘श में घोषणा  करता हूं कि जिस तरह किसी डिप्लोमा में एड्मि‘शन लेने का मतलब पास हो जाना नहीं होता ,उसी तरह ‘शादी का मतलब भी  की ५-६ साल में  5-6 बच्चे पैदा कर देना नहीं होता.मैं उतने ही बच्चे पैदा करूंगा,जितने पाल सकता हूं. और् सरकार को अपनी आया बिल्कुल नहीं समझूंगा. जय हिंद 
अंकल जी,यह घोषणा -पत्र उन युवाओं तक पहुंचाना अब का काम.

                                                                          आपका अपना बच्चा
                                                                            मन का सच्चा
                                                                          अकल का कच्चा
                                                                        - प्रदीप नील


बिल का अचार


 आदरणीय अन्ना अंकल,
   आप से तो मैं इतना नाराज़ हूं कि बात नहीं करूंगा,क्योंकि भ्र”टाचार के खिलाफ आपके अभियान ने मुझे पिटवा दिया.
  अंकल जी,मैं और पापा  नया टी.वी खरीदने बाज़ार गए. रेट की बात चली तो दूकानदार पूछने लगा,“ आपको बिल चाहिए?
   पापा बोले,“मैं कोई चूहा हूं,जो बिल चाहिए.भई हम तो ‘शेर-बब्बर हैं “
वहां खडे बीस ग्राहकों के साथ दूकानदार भी हंसा और टी वी पैक करने लगा.मुझे बात समझ ही नहीं आई थी,इसलिए पूछ लिया, “पापा यह बिल का क्या चक्कर है?
   पापा मस्ती में थे,लापरवाही से हंसकर बोले,“कुछ नहीं यार,बिल नहीं लेंगे तो टैक्स के 7-8 हज़ार बच जायेंगे.“
   मैंने ज़ोर से चिल्लाकर बोल दिया,“तो हम टैक्स चोरी कर रहे हैं? पापा, यह तो भ्रष्टाचार  है.“
   दूकानदार पुचकारने लगा ,“नहीं बेटा,यह जन जन का व्यवहार है, हमारे लिए व्यापार है“
अंकल जी,एक बात तो आप भी मानेंगे कि अपने दे‘श  में ‘शर्म अभी बची हुई है. पापा इतने ‘शर्मिंदा हुए कि बिल कटाकर ही घर आए.मैं भी बहुत खु‘श  हुआ कि मेरे पापा चोर नहीं हैं.
लेकिन, अंकल जी,घर आते ही पापा ने मुझे पीटा और मम्मी पर चिल्लाने लगे,“यह कैसा हरामज़ादा पैदा किया,जिसने भरे बाज़ार मेरी नाक कटा दी और 7000 की मंजी ठुकवा दी.“ उसी गुस्से में उन्होने वह बिल मम्मी के मुंह पर दे मारा और बोले“ इस बिल का अचार डाल लेना और भ्र”टाचार के इस ठेकेदार को एक महीना अब इसी “बिलाचार“ के साथ रोटी देना.“
अंकल जी, आपने राम लीला मैदान से जब भ्रष्टाचार की बात की थी तो इससे मिलते-जुलते'बिलाचार'का नाम क्यों नहीं लिया? अगर ले देते तो आपका यह बच्चा अपने बाप से न पिटता.इसीलिए मैं आपसे नाराज़ हूं.
   आप भूल गए होंगे,कोई बात नहीं लेकिन फिर कभी टी वी वालों से बात करो तो इससे मिलते जुलते जितने भी अचार हैं,सबका ज़िक्र जरूर कर देना.कहीं ऐसा न हो कि मुझे या मेरे किसी भाई को अगले महीने इन्कमटैक्साचार,बस या ट्रेन के टिकटाचार के साथ सूखी रोटी खानी पडे.
                                 आपका अपना बच्चा
                                 मन का सच्चा
                                 अकल का कच्चा
                                  - प्रदीप नील



                                 

मेरे १२५ करोड़ बाप

आदरणीय अन्ना अंकल,
कभी कभी मेरे मन में ख्याल आता है कि सरकार मेरी मां जैसी है.दे‘श  के 125 करोड लोगों को  पिता समान मानने को मन तो नहीं करता पर लोग एहसास करा ही देते हैं कि वे मेरे पिता समान ही नहीं बल्कि हैं ही मेरे बाप
अंकल जी,मेरे पिता कुछ ज्यादा ही मिलनसार हैं इसलिए हर ‘शाम  घर लौटते समय उनके साथ एक दो दोस्त ज़रूर ही चले आते हैं मेरी मां इस बात को जानती है और एक्स्ट्रा खाना तैयार रखती है। लेकिन होता यह है कि हम ज्यों ही खाना खाने बैठते हैं,उनका एकाध दोस्त और आ धमकता है ।मां दाल में पानी मिलाकर तेजी से रोटियां सेंकने जुट जाती है, अन्नपूर्णा का धर्म निभाते हुए स्वाभाविक है कि थोडी देर हो जाती है
   लेकिन अंकल जी, इतनी देर में पापा चिल्लाने लग जाते हैं ”बेवकूफ औरत,तुम दिन भर खाली पडी करती क्या हो? अरे अतिथी तो देव होते हैं,‘शास्त्रों  तक में लिखा है। मेरा घर सोने की चिडिया है,फिर भी हम भूखे? सुबह उठते ही तुम्हे तलाक नहीं दिया तो मेरा नाम भी राम औतार नहीं“
तलाक का नाम आते ही विपक्ष,यानि हमारे सामने वाले घर से जवान कन्या जिसका कहीं रिश्ता नहीं हो रहा,चीनी मांगने के बहाने पिताजी को ‘शक्ल दिखाने आ जाती है कि राम दुलारी को तलाक दो तो हमारा ख्याल ज़रूर रखना ज़रूर रखना जी“ 
अंकल जी, माफ करना,बात तो सरकार की हो रही थी
सरकार बेचारी साडी लपेटकर,सुहागन बिंदी लगाकर रोटियां सेंकने बैठती है तो ये मेरे बाप के दोस्त चले आते हैं, चोथी रोटी पर मेरा बाप चिल्लाता है “120 नहीं,121 करोड का खाना तैयार करो मां के हाथ पैर फूल जाते हैं चार रोटियों का आटा गुंथता ही है कि मेरे बाप कि आवाज़ आती है “राम दुलारी,122 करोड मां दाल में पानी डालती है कि मेरा बाप फिर चिल्लाता है“राम दुलारी,122 करोड और फिर 124..125...126
अंकल ऐसे में तलाक तो तय है आप भी मानेंगे कि सामने वाली छमकछल्लो भी ऐसे'मिलनसार'आदमी से ‘शादी  करके चार ही दिन इतरा पाएगी,फिर तलाक तो उससे भी होकर ही रहेगा.चाहे कितनी भी चुस्त औरत मेरी मां बन ले,पापा से ‘शाबासी नहीं ले पाएगी. कसूर पापा का भी नहीं,दुनिया में आए हैं तो मिलनसार तो होना ही पडता है.
ऐसे में कोई जब मुझसे पूछता है ”मुन्ना राज़ा,तुम किसके बेटे हो,मम्मी के या पापा के ?“ तो मैं ज़ोर से हंसकर ताली बज़ाता हूं और कहता हूं “मम्मी का,क्योंकि मेरा कोई बाप नहीं है“
लेकिन अंकल,मैं तो ‘शुरू  में ही कह चुका कि दे‘श  के 125 करोड लोगों को  पिता समान मानने को मन तो नहीं करता पर लोग एहसास करा ही देते हैं कि वे मेरे पिता समान ही नहीं बल्कि हैं ही मेरे बाप
अंकल मेरे इन बापों का कुछ हो सकता है? 

                                                                            आपका अपना बच्चा
                                                                             मन का सच्चा
                                                                            अकल का कच्चा
                                                                             - प्रदीप नील

चुनावी-घोषणा पत्र पिटवाएगा


 आदरणीय अन्ना अंकल,  
मेरी जान खतरे में है क्योंकि मेरी वज़ह से पहली बार मैदान में उतरा एक नया नेता चुनाव हार गया और अब वह मुझे मारना चाहता है. गलती सचमुच ही मेरी थी,जो आपके प्रभाव में आकर उसके लिए नीचे दिया गया चुनाव घोषणा -पत्र बना बैठा.
(1) मैं किसी प्रकार के 'साला-सालीवाद' में वि‘वास नहीं करता.
(2) बिजली,पानी तथा टैक्स-चोर मुझे यह सोचकर तो बिल्कुल वोट न दें कि मेरे जीतने के बाद उनके पौ-बारह हो जायेंगे.
(3) नकली या मिलावटी घी,दूध तथा ‘शराब  बनाने वाले मुझे वोट देकर ‘शर्मिंदा न हों.चुनाव जीता तो उन्हे भी अंदर जाना ही होगा.
(4) सबसे बडी बात पर मतदाता गौर करें कि मुझे वोट देने से से पहले अपनी आत्मामें झांक कर देखें कि मुझे वोट क्यों देना चाहते हैं?
    अंकल जी, आप समझ ही गए होंगे कि बाकी और बातें जो मैंने लिखी,क्या रही होंगी?
 इसके बाद मैं यह सोचकर मज़े से सो गया कि दे‘श  में आजकल अन्ना- आंधी चल ही रही है,मेरा पट्ठा जीतेगा और मुझे लाख दो लाख रूपए का इनाम तो पक्का ही देगा.
लेकिन अंकल जी, उसके पक्ष में सिर्फ दो वोट आए और उन दो में से  एक भी पता नहीं कौन डाल गया.नेता जी को चुनाव हारने का दुख नहीं है,दुख सिर्फ इस बात का है कि उनकी घरवाली ने भी उन्हे वोट नहीं दिया. अब नेता जी चार लोगों से यही कहते घूम रहे हैं कि मैंने  साला-सालीवाद का नाम न लिया होता तो मैं चुनाव ज़रूर जीत जाता. घो“ाणा-पत्र का नंबर एक  पढकर मेरी घरवाली तक ने वोट नहीं दिया और बाकी लोगों ने यह सोचकर वोट नहीं दिए कि जो अपनी  घरवाली तक का वोट नहीं ले सकता उसे हम वोट क्यों दें?“,
अंकल जी,यहां तक भी वह बेचारा मुझे माफ करने को तैयार है लेकिन मुश्किल  यह है कि उसका बसा बसाया परिवार उजडने वाला है क्योंकि घरवाली चार दिन से यही पूछ रही है,”राम औतार एक वोट तो मान लिया तूने डाला होगा,लेकिन बताता क्यों नहीं कि दूसरा वोट कौन चुडैल डाल गई.“
अंकल जी, अब आप सिर्फ इतना बता दें कि अगली बार किसी का घोषणा -पत्र बनाने बैठूं तो कौन सी गलतियां न करूं.
वैसे कितना अच्छा रहे, अगर आप ही एक नमूना बनाकर भेज दें. आपका यह बच्चा और पिटने से बच जाएगा.
आपका अपना बच्चा
मन का सच्चा
अकाल का कच्चा
प्रदीप नील