tag:blogger.com,1999:blog-82589164318619733562024-03-08T02:02:05.652-08:00सुनो अन्नाप्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.comBlogger26125tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-91747654360248699592012-08-25T04:16:00.000-07:002012-08-25T04:29:19.896-07:00 दाढ़ी वाली मल्लिका शेरावत <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">आदरणीय अन्ना अंकल ,</span><br />
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
कल राम औतार अखबार ले कर भागा-भागा आया और बोला " मेरी फोटो छपी है, तुमने देखी ?"</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
मैंने फोटो सुबह ही देख ली थी जिसमें राम औतार गधे पर बैठा था ,गले में जूत्तों की माला और चारों तरफ पुलिस वाले. मुझे तो यह फोटो देखने में ही शरम आ रही थी और इधर यह राम औतार फोटो यूँ दिखा रहा था मानो फोटो ना हो कर कोई गोल्ड मैडल हो .</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
मैंने कहा " इस उम्र में तुम्हे यह क्या सूझी राम औतार कि अपनी बेटी की उम्र की लड़की छेड़ दी ?"</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
राम औतार हंसने लगा " इस अखबार के सम्पादक को नीचा दिखाना था, दिखा दिया ."</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
मैंने पूछा " उसकी लड़की छेड़ कर ?"</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
राम औतार फिर हंसा " नहीं यार , उसके अखबार में अपनी फोटो छपवा कर ."</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
मैं हैरान रह गया , मैंने कहा " फोटो तुम्हारी छपी और नीचा उसने देखा ? मैं कुछ समझा नहीं ."</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
राम औतार बोला " समझाता हूँ . वैसे तो कहानी बहुत लम्बी है पर सारांश यह कि पिछले महीने मुझे दस लाख रुपयों से भरा एक बैग सडक पर पड़ा मिला था. मैंने उसके मालिक को ढूंढकर बैग लौटा दिया. तब इस अखबार वाले ने यह समाचार सिर्फ दो लाइनों में छापा था और वे दो लाइनें भी पता है कहाँ ? सातवें पेज पर खोया-पाया और टेंडर-नोटिस के विज्ञापनों के बीच ."</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
मैंने कहा " ओह तभी उस समाचार पर मेरी निगाह नहीं पड़ी..."</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
राम औतार ने कहा " तुम्हारी क्या किसी की नहीं पड़ी . खुद मुझे चश्मा लगा कर वह खबर ढूंढनी पड़ी थी "</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
मैंने कहा " बहुत बुरी बात है . उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था, बल्कि ऐसी न्यूज़ तो फोटो समेत फ्रंट-पेज पर छापनी थी..."</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
राम औतार बोला " तुम्हारी कही यही बात जब मैंने सम्पादक से कही तो वो चिढ गया .कहने लगा तू कोई मल्लिका शेरावत है जो तुझे फ्रंट-पेज पर छापूँ ? सातवें पेज पर भी न्यूज़ इसलिए छाप दी कि एक विज्ञापन आना था और वो आया नहीं इसलिए जगह बची हुई थी ."</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
मैंने पूछा " फिर ? "</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
राम औतार बोला " मैंने सम्पादक को धमका दिया और कह दिया कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब दाड़ी वाले बदसूरत <span style="line-height: 1.8;">राम औतार नाम की इस मल्लिका शेरावत की फोटो तू ही छपेगा और वह भी फ्रंट-पेज पर. बस फिर तो वह बहुत चिढ गया और बोला ऐसा इस </span>जन्म <span style="line-height: 1.8;"> में तो होगा नहीं क्योंकि हमने अखबार बेचना है , बंद नहीं कराना ."</span></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
<span style="line-height: 1.8;">मैंने कहा " चल आज उसको चिढा कर आते हैं कि राम औतार की फोटो तुमने ही ..."</span></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
<span style="line-height: 1.8;">राम औतार बोला " मै वहीँ से आ रहा हूँ . सम्पादक ने न केवल मुझे चाय पिलाई बल्कि पिछली बातों के लिए माफ़ी भी मांगी ."</span></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
<span style="line-height: 1.8;">मै हैरान रह गया , मैंने कहा " तुमने पूछा नहीं कि अब फोटो कैसे छाप दी ?"</span></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
<span style="line-height: 1.8;">राम औतार हंसा " चाय पीते-पीते पूछा था ."</span></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
<span style="line-height: 1.8;">मैंने डरते-डरते पूछा " सम्पादक क्या बोला ? "</span></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
<span style="line-height: 1.8;">राम औतार बोला " कुछ नहीं यार , सर झुका कर बोला हमने अख़बार बेचना है .."</span></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
<span style="line-height: 1.8;">अब मैं या आप क्या बोलें अंकल , सम्पादक ने एक लाइन में सब कुछ ही तो कह दिया .</span></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
<span style="line-height: 1.8;">आपका अपना बच्चा</span></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
<span style="line-height: 1.8;">मन का सच्चा,</span></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
<span style="line-height: 1.8;">अक्ल का कच्चा</span></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
<span style="line-height: 1.8;">प्रदीप नील </span></div>
<br class="Apple-interchange-newline" /></div>
प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-22844649820664487812012-08-25T03:07:00.000-07:002012-08-25T03:07:20.967-07:00कौन ? मैं हूँ मौन !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 1.8;"> आदरणीय अन्ना अंकल,</span><div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
आप इन दिनों मौन धारण किए हुए हैं तो बोलेंगे नहीं . चुपचाप बैठे रहने से टाइम पास नहीं होता . ऐसे में आप आज्ञा दें तो एक कहानी सुनाऊं ? .</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
अंकल जी, एक बाबा था बहुत ही ज्ञानी-ध्यानी. पूरा गांव उसकी बहुत कद्र करता था क्योंकि वह तन-मन का सच्चा तो था ही, किसी से कुछ मांगने भी नहीं जाता था . गांव वाले अपनी श्रद्धानुसार जो कुछ भी उसे दे जाते, खा लेता और परमात्मा का भजन करता .</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
पांच-सात मुस्टण्डों को लगा कि यह तो बड़े मजे का काम है कि दाढी बढाओ और बाबा की शरण चले जाओ. हींग लगे न फिटकरी, रंग भी चोखा आए . बाबा को कंधों पर उठा कर उसकी जय बोलने लगे.</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
जय बोलने पर हर कोई फिसल जाता है बेचारा भोला बाबा भी फिसल गया . अब ये चेले तसल्ली देने लगे ” अब देखना बाबा. हम गांव में जाया करेंगे और इतनी भिक्षा मांग लायेंगे कि बड़ा सा मंदिर बना देंगे. आप उसमें मज़े से भक्ति करना. आपकी भक्ति हो जाएगी और पूरे गांव के पापियों का कल्याण भी हो जाएगा.“ </div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
बाबा को उनके रंग-ढंग कुछ ठीक तो नहीं लगे पर उन्हे चेले बना ही चुका तो करता भी क्या, बेचारा. लेकिन, स्याने बाबा ने एक बात जरूर कही ” सब बातें बेशक भूल जाना मगर इतना जरूर याद रखना कि मैं साल में एक दिन शीर्षासन लगा कर मौन धारण किया करता हूं. उस दिन दुनिया बेशक इधर से उधर हो जाए लेकिन मैं किसी से कोई बात नहीं करूंगा .“</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
मुस्टण्डों ने इस बात को एक कान से सुना और दूसरे से निकाल भी दिया और गांव में जा कर धर्म के नाम पर चंदा इकट्ठा करने लगे. गांव ने पूरा सहयोग दिया और बाबा के साथ उनकी जय भी बोली जाने लगी . लेकिन अंकल, स्यानों ने सही कहा है कि पेट और जेब दोनों भर जायें तो उसके बाद हर किसी का काण्ड करने का मन होता है .</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
बस फिर वही हुआ और उनमें से एक मुस्टण्डे ने गांव में घोषणा कर दी कि मंदिर-वंदिर छोड़ो, इस चंदे से हम दूकान खोलेंगे और दूकान से मुनाफा आएगा उससे मंदिर भी बनवा देंगे . अब तो पूरा गांव क्रोधित हो कर उनके पीछे और मुस्टण्डे बाबा की तरफ भागे जायें . मुस्टण्डे यह सोच कर कि बाबा के कहने से शायद गांव वाले उनकी बात मान लें . बाबा ने दूर से देखा, माज़रा समझा और चिमटा गाड़ कर शीर्षासन लगा गया.</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
अब चेले दूर खड़े-खड़े देखें कि बाबा बचाएगा लेकिन बाबा तो मौन धारण कर चुका था .</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
नतीजा यह हुआ कि मुस्टण्डों की गांव वालों ने बहुत भर्तसना की और घोषणा कर दी कि ये चेले कोई भक्त नहीं बल्कि व्यापारी ही निकले . हां, बाबा जरूर बाबा ही है .</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
इससे आगे की कहानी तब सुनाऊंगा जब आप फिर कभी मौन धारण करेंगे . बुरा न मानें तो एक बात पूछूं अंकल जी, उस बाबा का मौन धारण करना तो मुझे समझ आता है लेकिन यह नहीं समझ आता कि आप बार-बार किस बात पर मौन धारण कर जाते हैं ?</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
अब मौन खत्म करो तो अगली कहानी आप सुनाना, अंकल. हम बच्चों को बड़ों को कहानी सुनाने में उतना मज़ा नहीं आता जितना उनसे सुनने में आता है .</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
सुनाओगे न अंकल ?</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
आपका अपना बच्चा,</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
मन का सच्चा,</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
अकल का कच्चा</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
--- प्रदीप नील</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
<br /></div>
</div>
प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-49650727482100018312012-08-25T02:44:00.000-07:002012-08-25T02:44:11.236-07:00 भगवां वस्त्रों की महिमा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
आदरणीय अन्ना अंकल,</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
हमारा पड़ौसी राम औतार बहुत गंदा है . हमेशा तेरहवीं बात करता है .</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
कल कहने लगा ” जी तो करता है कि बम ले कर सारे स्कूल-कालेज तबाह कर दूं .“ </div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
उसकी यह बात सुन कर मेरी ऊपर की सांस ऊपर रह गई और नीचे की नीचे. मैंने कहा ”होश में तो हो जो सरस्वती के मंदिरों को गिराने की बात कर रहे हो ? तुम्हे शर्म आनी चाहिए .“</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
राम औतार हंसने लगा, बोला ”<span style="line-height: 32px;">शर्म</span><span style="line-height: 1.8;"> तो आनी चाहिए इन स्कूल-कालेजों को जो नकली विषय पढा कर बेरोजगारों की फौज़ पैदा कर रहे हैं . बाद में ये बच्चे पैंट-शर्ट पहनना सीख जाते हैं और </span><span style="line-height: 32px;">शर्म</span><span style="line-height: 1.8;"> के मारे इनसे मज़दूरी भी नहीं होती. फिर ये सारी उम्र भूख मरते हैं और सरकार तथा देश को कोसते हैं “</span></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
अंकल जी, उसने वर्तमान की तस्वीर तो सही खींची थी इसलिए मैं भी सोच में डूब गया . जब कुछ भी फैसला नहीं कर पाया तो मैंने राम औतार से पूछा ”तो तुम्हारे हिसाब से क्या होना चाहिए ?“ </div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
राम औतार कहने लगा ”ऐसी पढाई होनी चाहिए कि बच्चा मात्र दस साल में करोड़पति होना सीख जाए .“</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
मैंने चिल्ला कर कहा ” आ गया न अपनी दो पैसे वाली टुच्ची औकात पर . अब तुम पांच-सात नेताओं के नाम गिना कर बताओगे कि फलां नेता पहले सब्जी बेचता था, और फलां नेता ...“</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
राम औतार ने बात काटते हुए कहा था ”बिलकुल नहीं. खादी वाली नेतागिरी के इस धंधें में आजकल पैसा कम है, बदनामी ज्यादा . मैं तो वो विषय बता रहा था जिसमें पैसा भी है और इज़्ज़त भी .यानि, भगवां वस्त्रों में नेतागिरी. इसके लिए करना सिर्फ इतना है कि चारों तरफ गुरूकुल खुलें और उनमें प्राचीन वेद-शास्त्रों का ज्ञान दिया जाए तो हर छात्र करोड़पति हो सकता है .बस <span style="line-height: 32px;">शर्त</span><span style="line-height: 1.8;"> सिर्फ इतनी है कि वह इतना बडबोला हो कि अपनी बात नीचे न पड़ने दे, बीए या एमबीए किए बिना भी चीज़ें बेच सकता हो , देश की हर समस्या के लिए नेताओं को जिम्मेवार ठहरा सकता हो और उसे भगवां पहनना अच्छा लगता हो .“</span></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
मैंने पूछा ” आप भगवां वस्त्रों पर इतना जोर क्यों दे रहे हैं ? मैंने तो सुना है कि ये वस्त्र पहन कर पैसा कमाना तो दूर, खुद अपना राज-पाट तक छोड़ने का मन करने लगता है“.i</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
राम औतार गुस्से हो गया ” किससे सुना है, गधा कहीं का ! कितने ही बाबा -बाबियां हैं देश में जो लोगों को मोह-माया से दूर रहने का उपदेश दे कर ही करोड़पति हो गए .तुम्हारी आंखें हैं कि बटन ?“</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
मैंने हाथ जोड़े ” सही कह रहे हो, मालिक . सब समझ आ गया लेकिन इतना नहीं समझ पाया कि भगवां किस लिए..?“</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
राम औतार कहने लगा ” भगवां वस्त्र संसार का आठवां आश्चर्य है क्योंकि, रोज ही देश के किसी न किसी हिस्से में भगवां वालों की पोल खुल रही है फिर भी इसके प्रति लोगों का सम्मान खत्म नहीं होता. और फिर ये दिव्य-वस्त्र हैं ही इतने सुविधाजनक कि पूछो मत . जब तक चेलों के सामने अकड़ बनी रहे, इन्हे सजाए रखो लेकिन जान बचाने के लिए दूसरे वस्त्र पहनने हों तब इन्हे उतार फैंकने में भी मात्र एक ही सेकिण्ड लगता है .“</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
अंकल जी, राम औतार की बात सुन कर मेरे दिमाग ने तो काम करना ही बंद कर दिया है . अब आप ही बताईये उसकी बात ठीक है या गलत ?</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
आपका अपना बच्चा,</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
मन का सच्चा,</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
अकल का कच्चा</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
- प्रदीप नील </div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
<br /></div>
<br class="Apple-interchange-newline" /></div>
प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-68452553058214972442012-08-23T23:43:00.000-07:002012-08-23T23:43:26.083-07:00बहू लायेंगे इंग्लैंड से <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
आदरणीय अन्ना अंकल,</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
बेटी बचाओ के नारों के इस दौर में एक नारे ने मेरी नींद हराम कर रखी है . यह नारा लगभग हर मंच से गूंजने लगा है ”बेटी नहीं बचाओगे तो बहू कहां से लाओगे ?“</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
देखने में यह नारा बेटियां बचाने के पक्ष में लगता है जबकि वास्तव में ऐसा है नहीं . इसमें चिंता बेटी बचाने को ले कर नहीं बल्कि अपने लाड़ले के लिए बहू लाने को ले कर है कि बेटियां अगर नहीं बचाई गई तो आपके बेटे रण्डुए रह जायेंगे और आपने दहेज़ में एक किलो सोना और कार लेने का या बाद में बहू को जला कर आनन्द लेने का जो सपना देख रखा है, वह अधूरा रह जाएगा. कोई माने या न माने, लेकिन नारा साफ कह रहा है कि और लोगों को बेटियां बचानी ही चाहिए ताकि हमारे बेटे को बहू आसानी से मिल जाए. क्योंकि भारत ने अभी इतनी तरक्की तो की नहीं कि कोई अपनी ही बेटी को बहू बना ले .तो मतलब साफ है कि ये नारा यह नहीं कहता कि बेटियां हम बचाएं बल्कि यह सुझाव दे रहा है कि जहाँ हमारे बेटे का रिश्ता हो सकता है, वे परिवार बेटियां बचाएं ताकि हम बहू ले आएं . यानि, कुला जामा बात तो यह हुई कि सारा मामला बहुओं को बचाने का है, बेटियों को बचाने का नहीं . शायद इसी बात पर गालिब ने कहा था :</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
” वो कहते हैं मेरे भले की</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
लेकिन बुरी तरह “</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
दूसरी बात ये कि यह नारा चुनौती देता है कि बहू कहां से लाओगे ? चुनौती जब भी कोई देता है, हम भारतवासी आगे बढ कर स्वीकार कर लेते हैं. सारे भारतवासी न सही हमारा पड़ौसी राम दुलारे तो स्वीकार कर ही लेता है. कल ही हमारे मोहल्ले के मंच से नारा गूंजा ” बेटी नहीं बचाओगे तो बहू कहां से लाओगे ?“ राम दुलारे तुरंत चिल्लाया ” बिहार से, बंगाल से, उड़ीसा से . और अब तो इंटरनेट, फेसबुक का ज़माना है तो चैटिंग-सैटिंग करके पोलैंड या होलैंड से भी ले आयेंगे .“</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
मंच-संचालक को राम दुलारे का जवाब बहुत बुरा लगा . लेकिन राम दुलारे समझाने लगा कि इसी सवाल को ऐसे पूछो ”बहुएं नहीं बचाओगे तो बेटी कहां से लाओगे? यानी, पहले बहुओं को तो बचाना सीख लो , बेटियाँ तो खुद हो जायेंगी .</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
इस बात पर भीड़ में बैठी कुछ सास टाइप औरतें नाराज़ हो गई कि यह मुआ भी ज़ोरू का गुलाम निकला ! कोई हम बूढियों का पक्ष भी तो ले, सास को बचाने की बात क्यों नहीं कहते, हरामियो ?</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
तब से बेचारा मंच-संचालक अपना सर पकड़े बैठा है कि बेटियां बचाने के लिए वह क्या नारा लगाए ? इतना तो वह भी जानता है कि बेटियां नारे लगाने या उनकी घुड़चढी करवा देने से नहीं बचती . खुद जब वह पिछले साल अपनी पत्नी को मैटरनिटी होम ले कर जा रहा था तो उसकी मां ने कहा था ” चांद सा बेटा ले कर आना . ईंट-पत्थर मत ले आना .“</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
ऐसे में आप ही हमारी मदद कर सकते हैं यह समझा कर कि बेटियां <span style="line-height: 1.8;">ईंट-पत्थर</span><span style="line-height: 1.8;"> नहीं होती बल्कि वे </span><span style="line-height: 1.8;"> तो छुई-मुई का पौधा होती हैं जिन्हे खाद-पानी और खुला आसमान तो चाहिए ही, अनचाहे स्पर्श से भी दूर रखे जाने की भी वे मांग करती हैं .</span></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
आपका अपना बच्चा,</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
मन का सच्चा,</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
अकल का कच्चा</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
- प्रदीप नील </div>
</div>
प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-84822850203408248012012-08-18T05:42:00.000-07:002012-08-18T05:42:55.729-07:00 फव्वारा चौक का अन्ना ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;"> </span><br />
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
<br /></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
आदरणीय अन्ना अंकल,</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
आपने भ्रष्टाचार के खिलाफ जो आंदोलन छेड़ा उसका नतीज़ा यह हुआ कि आम आदमी अब सिर्फ<span style="line-height: 1.8;"> नेताओं और कर्मचारियों को चोर मानने लगा है और उसे अपनी कोई भी कमी नज़र नहीं आती.</span></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
अब देखो न अंकल , औसत दूधिया दोनों समय पानी मिला कर दूध बेचता है और फिर भी यह दावा करता है कि वह तो किसी तरह बच्चों का पेट पाल रहा है. इन नेताओं को देखो ना जो करोड़ों खा गए. बिल्कुल यही बात बिजली और पानी की चोरी करने वाला सोचता है और यही बात वह भी कहने लगा है जो नकली घी बनाता है या सोने में पीतल मिलाता है . किसी का बिना हैल्मेट के चालान कटने लगता है तो उसकी यही दलील होती है कि पुलिस वाले खुद तो हैल्मेट पहनते नहीं और हमारा चालान काटते हैं . यानि हर चोर अब नेताओं को चोर बता कर खुद को सही ठहराने लगा है .</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
अंकल जी, आप तो हमें शायद यह सिखा रहे थे कि शराब से कीड़े मर जाते है़ं इसलिए यह हानिकारक है जबकि हमने यह समझा कि शराब अच्छी चीज़ है जिसे पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं . आप को लगता नहीं कि आप कैसे-कैसे चेलों के गुरू हो गए ?</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
इससे भी बड़ी बात तो यह अंकल जी, कि हम लोगों की नज़दीक की नज़र बहुत कमज़ोर हो गई है और दूर की बहुत तेज. हमें दिल्ली के राम लीला मैदान में खड़ा अन्ना तो दिखता है लेकिन मेरे अपने शहर के फव्वारा चौक पर खड़ा रहने वाला अन्ना नहीं दिखता . यह अन्ना ना तो खादी पहनता है और ना गांधी टोपी ही बल्कि पुलिस की वर्दी में हर समय हैल्मेट पहने खड़ा रहने वाला हमारे शहर का ट्रेफिक-इंचार्ज़ देवा सिंह है. लेकिन हम इतने बेशर्म हो चुके हैं कि हेलमेट लगाए धरती पर खड़े उस देवा सिंह के पास से बिना हैल्मेट लगाए बाईक पर गुजरते रहते हैं और एक पल भी नहीं सोचते कि खाकी वर्दी वाला यह आदमी सारा दिन हैल्मेट क्यों पहने रहता है और तब भी जब वह बाईक पर नहीं होता बल्कि चौक पर खड़ा होता है ? इसके हाथ में लाठी नहीं है इसलिए हम इसे पुलिस वाला नहीं मानते और इसने गांधी टोपी नहीं पहनी इसलिए हम इसे अन्ना भी नहीं मानते. हम अन्ना का भक्त उसी को मानने लगे हैं जो कुछ भी करे लेकिन टोपी लगा ले जिस पर लिखा हो ” मैं भी अन्ना “ लेकिन यह बात हम बेवकूफों को कौन समझाए कि अन्ना तो मन से अन्ना होता है उसने चाहे गांधी टोपी पहन रखी हो या हैल्मेट .</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
खाकी वर्दी में कहते हैं बहुत नशा होता है लेकिन इस इंस्पेक्टर को देख कर यह बात झूठ लगती है .यह नशे की बजाए प्रेरणा से लोगों को समझाना चाहता है . लेकिन हम जूत्ते से समझने वाले लोग....</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
कल को यही देवा सिंह पुलिसिया लाठी उठा कर खड़ा हो जाए कि आओ मेरे प्यारो आज देखता हूं कौन मेरे पास से बिना हैल्मेट लगाए गुजरता है ? तब क्या होगा ? लोग या तो रास्ता बदल जायेंगे या हैल्मेट लगा कर ही उधर से गुजरेंगे .लेकिन वही दलील फिर भी देंगे कि नेता तो देश को लूट के खा गए उनका कोई पुलिस वाला कुछ बिगाड़ता नहीं, हमने क्या अपराध किया है , एक छोटा सा हैल्मेट ही तो नहीं पहना .<span style="line-height: 1.8;">अंकल जी, आप को लगता नहीं कि आप कैसे-कैसे भक्तों के देवता हो गए ? </span></div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
आपका अपना बच्चा,</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
मन का सच्चा,</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
अकल का कच्चा</div>
<div style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">
--- प्रदीप नील</div>
<br class="Apple-interchange-newline" /></div>
प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-52029063579460913092012-06-10T21:57:00.000-07:002012-06-10T21:57:06.320-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सुनो अन्ना,<br /> <u> मन डोले, मेरा तन डोले</u><br /><br />आदरणीय अन्ना अंकल,<br /> कल मैं भक्तों के हाथों और लातों बुरी तरह पिटा .पर अब सोचता हूं कि गलती तो मेरी ही थी.<br />असल में हुआ यूं, अंकल जी कि हमारे महल्ले में भजन-कीर्तन का आयोजन हो रहा था . अब थोडे़ बहुत पाप मैं भी कर लेता हूं इसलिए सुधरने के लिए वहां चला गया और पूरी श्रद्धा सहित हाथ जोड़ कर बैठ गया .मंच पर एक बहुत ही सुंदर गायिका प्रकट हो गई तब भी मैंने अपनी आंखें कस कर बंद रखी और परमात्मा में ध्यान लगाने की कोषिष करने लगा .गायिका ने आलाप लिया और गाना षुरू कर दिया ”भोले न्यूं बोले, षिवजी न्यूं बोले... “<br />और मेरी आंखें खुल गई कि यह तो ” मन डोले, मेरा तन डोले..“ की धुन है .सभी भक्त झूम रहे थे पर मेरा ध्यान गायिका के षब्दों पर लग ही नहीं पा रहा था पुरानी फिल्म ”नागिन“ का मन डोले... गीत याद आ रहा था .<br />और मैं खड़ा हो गया . मैंने कहा ” आप हमें पाप से दूर ले जाने के लिए भजन गा रही हैं .और खुद धुन चोरी कर रही हैं .क्या सिखाएंगी आप हमें ?“<br />नतीज़ा यह हुआ कि भजन भूल कर गायिका सन्न खडी़ रह गई .चारों तरफ षोर मच गया . कोई मुझे नषेडी़ कह रहा था, कोई कह था कि रावण का वंषज है जो भक्ति में विघ्न डालने आ गया .और भजन-मंडली का सोचना था कि आजकल सारे ऐसे ही तो गाते हैं और मुझे ज़रूर ही उनके प्रतिद्वंदी ने भेजा है कढी बिगाड़्ने के लिए .बस माईक से एक ही षब्द आया ”मारो“<br />अंकल जी, अपने देष में ” मारो “ कहने की तो ज़रूरत ही नहीं पड़ती क्योंकि भीड़ में घुस कर मारना तो हमारा मुख्य-धंधा है .तब आपके इस बच्चे की क्या हालत हुई होगी, आप सोच ही सकते हैं .<br />वैसे अब मुझे अपनी गलती समझ आ रही है . मुझे चाहिए तो यह था कि एक आंख बंद करके मुण्डी हिलाता रहता और भजन को सुनता या देखता रहता . कितना पुण्य मिलता ! पर मुझसे ऐसा नहीं हो पाया इसलिए वहीं पिट गया और पाप की सज़ा पा गया .<br />अंकल जी, अब भजन-कीर्तन में जाने से डरने लगा हूं .क्या आप थोड़ा पिघला हुआ षीषा भिजवा देंगे ? इसे मैं अपने कानों में भरवा लेना चाहता हूं .<br />आपका अपना बच्चा,<br />मन का सच्चा,<br />अकल का कच्चा<br />- प्रदीप नील </div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-88661200135545403532012-04-15T04:01:00.000-07:002012-04-15T04:01:01.101-07:00अपनी- अपनी गरीबी रेखा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <strong>अपनी- अपनी गरीबी रेखा </strong><br />
<br />
आदरणीय अन्ना अंकल,<br />
मेरा एक मित्र है राम औतार . करोड़पति है, कोठी -कार और सब सुविधाएं उसके पास हैं लेकिन चाय पीने का मन होने के बावज़ूद जेब से पांच रूपए नहीं निकालना चाहता और तलाश में रहता है कि कब उसे कोई चाय-बीडी़ पिलाने वाला मिले . ऐसे में मैं उसकी औकत मात्र पांच रूपए ही समझता हूं और चाहता हूं कि मेरा वह मित्र अपने आप को गरीबी रेखा से नीचे मान ले लेकिन मित्र है कि उसे अपने आप के करोड़पति होने का घमण्ड रहता है . मैं सरकार होता तो उसे यकीनन ही गरीबी रेखा से नीचे रखता और वह इस बात पर मुझे कोसता. यानि सरकार की फज़ीहत तो तय है .<br />
मेरा दूसरा मित्र राम खिलावन झोंपडे़ में रहता है .दाने-दाने का मोहताज़ है लेकिन घर में दो मोबाइल फोन हैं और हर शाम देसी शराब का अद्धा पता नहीं कैसे उसके पास आ जाता है . उसे दुख है कि उसके पास साईकिल ही क्यों है , बाईक क्यों नहीं ? वह चाहता है कि उसे गरीबी रेखा से नीचे मान लिया जाए और सरकार उसके आठों बच्चों को पाले . मैं सरकार होता तो उसे गरीबी रेखा से ऊपर मानता . जिसके घर में केबल टी वी हो, दो मोबाइल हों ,हर शाम शराब का जुगाड़ हो और जो आदमी बेचारी सरकार तक को अपने बच्चों की आया बनाने के सपने देखता हो उसे गरीबी रेखा से नीचे रखना तो रेखा की बेइज़्ज़ती होती .ऐसे में मैं सरकार होता तो यकीनन ही राम खिलावन मुझे गालियां देता . यानि, सरकार की फज़ीहत तो तय है .<br />
सच तो यह है कि इस गरीबी रेखा की शक्ल जिसने बिगाड. रखी है वह औरत हमारे महल्ले में रहती है . कुछ साल पहले जनगणना हुई थी तो पता चला था कि वह हर सेकिण्ड एक बच्चे को ज़न्म दे डालती है . अब मुझे पूरा यकीन है कि वही औरत आज़कल हर सेकिण्ड तीन नहीं तो कम से कम दो या डेढ बच्चे तो ज़रूर ही पैदा करने लगी है .<br />
और उस औरत के सामने बेचारी सरकार मुझे तो सातवीं क्लास को पढाने वाली ड्राइंग भैंजी लगती है . भैंजी बेचारी ब्लैक-बोर्ड की तरफ मुंह करके गरीब बच्चों के चारों तरफ गरीबी रेखा खींच रही होती है कि पीछे से वह औरत दो बच्चे उसे रेखा के पास गिरा कर ताली बजा कर हंसती है और मज़ाक उड़ाने लगती है कि ऐसी औरत को किसने भैंजी लगा दिया जिसे सही रेखा ही नहीं खींचनी आती .भैंजी हैरान-परेशान होकर वह रेखा मिटाकर दूसरी बना ही रही होती है कि वह औरत पांच बच्चे फैंक कर भैंजी को मूर्ख साबित कर देती है . यानि, सरकार की फज़ीहत तो तय है .<br />
लोग सरकार की बनाई गरीबी रेखा से खुश नहीं होते और हरेक को शिकायत बनी रहती है .<br />
जिस तरह जितने मुंह उतनी बातें, उसी तरह जितने लोग उतनी ही गरीबी रेखाएं . ऊपर से दिक्कत यह कि आज़कल लोग मुंह भी दो-तीन रखने लेगे हैं .ऐसे में क्या हो सकता है ? यानि, सरकार की फज़ीहत तो तय है . <br />
<br />
<br />
आपका अपना बच्चा,<br />
मन का सच्चा,<br />
<br />
अकल का कच्चा<br />
<br />
- प्रदीप नील </div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-78213274573397930752011-11-11T21:03:00.000-08:002011-11-11T21:03:25.501-08:00कहाँ है भगत सिंह की दुल्हन ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> आदरणीय अन्ना अंकल,<br />
कल मैंने हमारी कक्षा की दो लड़कियों की बातें छुप कर सुनी।, आपको बता दूं<br />
” भगत सिंह कितना रोमांटिक रहा होगा, ना?“<br />
” तुम्हे कैसे पता ?“<br />
” क्यों हिस्ट्री के पीरियड में मैडम बता तो रही थी कि उसने सपने तो देखे किसी ”क्रान्ति“ के लेकिन दुल्हन बना लिया ”आज़ादी“ को . इसी अफेयर की वज़ह से तो उसे प्राण भी गंवाने पडे़ .“<br />
” सो सैड. मारा गया बेचारा. मैं तो कहती हूं यह ओनर-किलिंग रही होगी “<br />
” सो तो है ही. इस क्रान्ति ने भी जाने कितने लड़कों को मरवाया होगा “<br />
” यू मीन, क्रान्ति इतनी बेकार है?“<br />
”और नहीं तो क्या ? नहीं तो आज़ भी लड़के हमारी बजाए उसी के पीछे न भागते?“<br />
” सही कहा. वैसे टीचर ने क्या बताया भगत सिंह की दुल्हन का क्या हुआ?“<br />
” स्टुपिड ओनर-किलिंग एक तरफा नहीं होती . किसी न किसी ने तो उसे भी ज़रूर ही मारा या टार्चर किया होगा?“<br />
अंकल जी उसके बाद की बातें नहीं सुन पाया क्योंकि चेतना और जागृति नाम की ये दोनों लड़कियां विवेक और चेतन्य नाम के लड़कों के साथ गप्पें हांकने लगी, जो इन्हे खोजते हुए यहां आ गये थे.<br />
अंकल जी आप ही बताईये, जिस देश की चेतना और जागृति इतनी स्टुपिड हों , और जिस देश के विवेक और चेतन्य उनके पीछे चक्कर काटते हों, उस देश को गुलाम होने से कोई रोक सकता है?<br />
वैसे उन बेवकूफ लड़कियों के एक सवाल में मैं अभी तक उलझा हूं कि भगत सिंह की दुल्हन का क्या बना होगा ? भगत सिंह की ओनर-किलिंग तो सभी जानते हैं किसने की थी .<br />
आपका अपना बच्चा<br />
मन का सच्चा <br />
अकल का कच्चा <br />
प्रदीप नील <br />
</div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-19835214417963535112011-11-10T07:49:00.000-08:002011-11-10T07:49:18.375-08:00नेता का दिमाग घुटने में ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">आदरणीय अन्ना अंकल ,<br />
कल हमारे संगीत वाले सर हमें देशभक्ति का गाना सिखा रहे थे,लेकिन बहुत ही गुस्से में थे. बोलने लगे,“ बच्चो,कहां का देश,और कैसा देश ! तुम्हारे सामने भला-चंगा खडा हूं.मुझे तो कल रिटायर होना पडेगा. और इधर नेता हैं कि 70 साल के हो जाएं,घुटने काम ना कर रहे हों,तो भी उन्हे रिटायर करने वाला कोई नहीं है.“<br />
यह अन्याय की बात सुनकर हम तो हैरान रह गए, अंकल जी.<br />
तभी चपडासी पानी लेकर आया,प्रिंसीपल को गालियां देता हुआ. सर की बात सुन कर बोला,“देश तो अब पाताल को जाएगा ही. यहां अंधे तो बच्चों को संगीत सिखाते हैं“<br />
यह सुनते ही संगीत वाले सर चिढ गए. चिल्लाए,“ बकवास क्यों करता है,राम औतार के बच्चे ? मैंने संगीत गले से सिखाना होता है, आंखों से नहीं “<br />
राम औतार उसी तर्ज़ पर बोला,“ तो तू भी जान ले,राम लुभाए कि नेता ने देश दिमाग से चलाना होता है, घुटनों से नहीं “<br />
यह बहस ज्यादा देर नहीं चली, क्योंकि दोनो एकदम से “नवीन भारतीय संस्कृति“ पर उतर आए.यानी संगीत वाले सर जी तबले पर थाप की तरह राम औतार के सिर पर सितार मारने लगे. राम औतार इस भरोसे के साथ कि प्रिंसीपल उसने बनना नहीं,चपडासी से नीचे कुछ बना सकते, हुक्म बजाने की तरह सर के सिर पर जूत्ता बजाने लगा.<br />
हम सभी ज़ोर-ज़ोर से रोने लगे तो पूरा स्कूल भागकर आया और उन्हे छुडवाया.<br />
अंकल जी,हम तो हैरान रह गए कि इस तरह तो हम बच्चे भी नहीं लडते. जब हम बच्चे लडते हैं तो सारे सर एक ही बात कहते हैं “तुम्हारा क्या मकान बंट रहा था,जो बंदूक निकाल ली ?“ आज हमें समझ नहीं आया कि यहां कौन सा मकान बंट रहा था?<br />
अंकल जी,हमें सबसे घटिया बात तो यह लगी कि ये बड़े लोग एक दूसरे की शारीरिक अक्षमता का मज़ाक उडा रहे थे.कोई अपाहिज या बीमार है तो इसमें उस बेचारे का क्या कसूर?<br />
घर जाकर दादा जी से मैं पूछने लगा कि नेता को किस उम्र में रिटायर होना चाहिए ?<br />
दादा जी गुस्से से बोले ' मैं कोई नेता तो हूँ नहीं . किसी नेता से ही पूछ ले जो सत्तर साल से ऊपर का हो ".<br />
अब आप ही बताइए अंकल कि यह बात किससे पूछूं ? <br />
आपका अपना बच्चा<br />
मन का सच्चा <br />
अकल का कच्चा<br />
प्रदीप नील </div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-48037026161629974552011-11-08T19:36:00.000-08:002011-11-08T19:36:27.247-08:00”नो स्नान-नो मतदान“<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">कल हमारे नेता राम औतार ने मुझसे कहा“ अन्ना के भतीजे, सुन,मैं चुनाव-सुधार अभियान में योगदान देना चाहता हूं,इतिहास में दर्ज़ कर लेना. अपने अंकल से बोलना कि मेरे सुझाव ये हैं :<br />
(1).तीसरी क्लास का बच्चा भी जानता है कि ”नेता” शब्द पुलिंग है और ”जनता” स्त्रीलिंग. जनता नाम की लडकी को उम्मीदवार नाम के 10-15 लडकों में से किसी एक को पसंद करना होता है. इस प्रकिया का नाम चुनाव नहीं बल्कि ”स्वयंवर” है. अतः सबसे पहले इसका नाम बदला जाए.<br />
(2).कुछ मतदाता पैसा हमसे लेते हैं,वोट किसी और को दे आते हैं. यह “ साई और को,बधाई किसी और को“ टाइप भ्रष्टाचार बंद होना चाहिए. इसके लिए बिल लाया जाए.<br />
(3). चुनाव के वक्त कुछ लोग घोषणा कर देते हैं कि उनका जब तक अमुक काम पूरा नहीं होगा,वे मतदान नहीं करेंगे.यह व्यवहार उस बुआ जैसा है जो भतीजे की शादी में रूठ जाती है.<br />
फूफाओं से कहिए कि ऐसी बुआओं पर लगाम लगाएं.<br />
(4). चारों तरफ “स्वच्छ“चुनाव प्रकिया पर ज़ोर दिया जा रहा है, लेकिन इधर किसी का ध्यान नही है कि मतदाता बूथ पर नहाकर भी आया है,या नहीं ? पोलिंग अफसर को चाहिए कि मतदाता को सूंघकर,तसल्ली होने के बाद ही वोट डालने दे. आगामी चुनावों का नारा भी सुझा देता हूं ”नो स्नान-नो मतदान“<br />
(5). मतदाता ने मत किसको दिया,इस बात की पूरी गोपनीयता रखी जा रही है. अबे, मैं पूछता हूं कि यह मतदान है या गुप्तदान ? वोटर को वोट डालने का हक है, तो हमें लेने का भी तो है. किस बात का दान ? अगर आप मेरे सुझाव नंबर एक को दोबारा देखें तो दान टाइप कोई और शब्द आप ही बता देंगे.<br />
(6). पोलिंग बूथ अक्सर स्कूलों में बनाए जाते हैं. हमें पढाने वाले गुरू जी रोज कहते थे कि स्कूल के बच्चों और बंदरों में कोई फर्क नहीं होता.स्कूल में घुसते ही मतदाता का मन कैसा हो जाएगा,सोचना ज़रा? भगवान न करे, भेड-फार्म में पोलिंग बूथ हो तो? जब सुधार ही करना है तो सारे बूथ “सुधार-गृह“ में होने चाहिएं. विचार भी शुद्ध रहेंगे, प्रकिया भी.<br />
<br />
बाप रे बाप! अंकल जी, आप भी यह क्या सुधार का झमेला ले बैठे ? मुझे तो नहीं लगता, हम राम औतार का एक भी सुझाव, इस जन्म में लागू कर पायेंगे.<br />
चिट्ठी आपको इसलिए लिख दी कि कल को कोई यह न बोलने लगे कि ये नेता लोग ही चुनाव सुधार के पक्ष में नहीं हैं.<br />
आपका अपना बच्चा<br />
मन का सच्चा <br />
अकल का कच्चा <br />
प्रदीप नील </div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-59125214847191176922011-11-06T06:17:00.000-08:002011-11-06T06:17:50.167-08:00अन्ना, मेरा बाप चोर है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: small;">आदरणीय अन्ना अंकल ,</span></div>मम्मी ने अनशन पर जाने की धमकी दी तो पापा डर गए और हमारे घर में नया ए.सी. लग गया.<br />
लग तो गया लेकिन पापा मुंह लटका कर बोले “बिल“<br />
मम्मी हंसने लगी, “ कौन सा,लोकपाल या जन लोकपाल ?“<br />
पापा झल्लाए, “नालायक, मैं बिजली के बिल की बात कर रहा हूं. अगले महीने बिल आएगा,तो ए.सी. का पता चलेगा.“<br />
मम्मी मुस्कुराई, “तुम भी भोले शंकर ही हो. दो दिन रूको फिर मेरा कमाल देखना.“<br />
दो दिन बाद एक अंकल हमारे घर आए और बिजली की तार,मीटर और स्विच के साथ पता नहीं क्या करने लगे. मैंने पूछा तो पापा ने डांट दिया,“ जाकर गली में खेलो, दोस्तों के साथ “<br />
अंकल जी, यह तो मेरे एक दोस्त ने बताया कि इसे बिजली चोरी कहते हैं. सुनकर मेरा तो मुंह उतर गया और सोचने लगा तो क्या मेरे पापा चोर हैं?<br />
घर पर मम्मी ने डांट दिया, “क्यों दिमाग खराब करता है. सारे ही तो करते हैं. नेताओं को देख ना देश को लूट कर खा गए.“<br />
लेकिन, अंकल जी, मेरा दिमाग अभी खराब ही है. मेरे पापा चोर कैसे हो सकते हैं ? वे तो पूरा दिन अन्ना- अन्ना करते रहते हैं. कल कह भी रह थे कि अन्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ जो बिगुल बजा रहे हैं, उसका अच्छा नतीज़ा ही आएगा.<br />
अंकल जी,मेरे पापा कभी दिखें तो डांटना ज़रूर. ऐसा न हो कि बिजली चोरी में हम पकडे जाएं और मुझे अपने हाथ पर लिखवाना पडे “मेरा बाप चोर है“<br />
<div style="text-align: left;"><span style="font-size: small;">आपका अपना बच्चा </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: small;">मन का सच्चा <br />
</span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: small;">अकल का कच्चा </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: small;">प्रदीप नील <br />
</span></div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: small;"><br />
</span></div></div><div style="text-align: left;"> </div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: small;"> </span></div></div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-34832808092707450632011-10-23T03:30:00.000-07:002011-10-23T03:30:21.615-07:00कर लो जब्त : यह रहा काला-धन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <b> कर लो जब्त : यह रहा काला-धन </b><br />
आदरणीय अन्ना अंकल,<br />
हमारी गली का राम औतार अपना काला धन जब्त कराने के लिए अनशन कर रहा है,लेकिन सरकार है कि इसे काला धन ही नहीं मान रही.<br />
राम औतार ने परसों गली के चौक पर स्टेज़ बनाई,लाऊड-स्पीकर लगाया और इस पर अपने अनशन की घोषणा करते हुए सरकार के खिलाफ भाषण शुरू कर दिया. तमाशा देखने वालों को अपना समर्थक समझकर जोश में भर गए और बोले कि जब तक उनका काला-धन जब्त नहीं किया जायेगा, वे प्राण त्याग देंगे लेकिन हटेंगे नहीं.<br />
अंकल जी , मरे से मरे भारतीय के घर भी 5-7 तोले सोना और आधा किलो चांदी दबी ही रहती है.लोग डरे कि खुद भी मरेगा और हमें भी मरवायेगा. यह यहां से हटे तो उनका भी पिण्ड छूटे. बस किसी ने खबरिया चैनल को फोन कर दिया. चैनल वालों के पास उस दिन कोई धमाकेदार न्यूज़ नहीं थी, सो बेचारों ने छतरी की तरह राम औतार पर कैमरा तान दिया.एंकर चिल्लाने लगा,“ धन्य है यह देशभक्त जिसका विवेक जागा और अपना काला धन सौंपने को तैयार है. सरकार कब तक छुप कर तमाशा देखेगी? उसे आना ही पडेगा, इसी ज़गह, इसी चौक में....“<br />
और हार कर पुलिस-कप्तान को आना पडा. उन्हे लेकर राम औतार अपने घर की और चले. पीछे उनके समर्थकों की भीड. राम औतार के घर के आंगन में उनकी पत्नी खडी थी,मोटी और काले रंग की. राम औतार ने उसकी तरफ इशारा करते हुए हुए कहा,“ यही है मेरा काला धन.जब्त कर लो इसे.“<br />
कप्तान साहब का जी तो किया होगा कि इसे अभी एक झन्नाटेदार थप्पड दूं,लेकिन कैमरे के सामने यही कहा,“यह आपकी पत्नी है,बडे भाई. यह काली तो है लेकिन...“<br />
राम औतार उन्हे समझाने लगे,“ देखिए,शास्त्रों मे धन को लक्ष्मी कहा गया है,यह काली है तो काला धन हुआ कि नहीं? इसका नाम तो लक्ष्मी है ही, इसके बाप से मैंने मोटा धन दहेज़ के रूप में यानि दो नंबर में लिया था. अब बताओ,यह किस हिसाब से काला-धन नहीं है?“<br />
कप्तान साहब ने हाथ जोडे, “भाई साहब, काली औरतों को जब्त करने का कोई कानून नहीं है, ना ही कोई बिल.“<br />
राम औतार अडे हुए हैं कि बिल नहीं है तो बना लो.<br />
अंकल आप जूस पिला दें तो राम औतार अनशन तोड सकते हैं. ज़रा जल्दी आना क्योंकि टी वी वाले बहुत बोर कर रहे हैं, उन्होंने अपने चेनल की पूरी स्क्रीन की रजिस्ट्री राम औतार के नाम करा दी है<br />
आपका अपना बच्चा<br />
मन का सच्चा<br />
अकल का कच्चा<br />
- प्रदीप नील <br />
<br />
<br />
</div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-52803655925203558012011-10-19T23:56:00.000-07:002011-10-19T23:56:54.086-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"> आदरणीय अन्ना अंकल,<br />
मैं “व्यापारी और बंदर“ कहानी पढ रहा था तो मुझे लगा कि ऐसी कहानी तो मैं भी लिख सकता हूं. लेकिन अंकल जी, यह कहानी इतनी मुश्किल निकली कि मैं उलझ गया और आपकी मदद चाहिए.<br />
मेरी कहानी में भी वही व्यापारी टोपियां लिए जा रहा था,रास्ते में पेड के नीचे बैठा और सो गया था.नींद खुली तो पाया कि उसकी पोटली तो वहीं थी,लेकिन टोपियाँ गायब. उसने “हे भगवान !“कहकर ऊपर देखा तो चौंका क्योंकि उसी पेड पर बहुत सारे बंदर बैठे थे.बंदर टोपियां ओढ कर इतरा रहे थे, आत्म-मुग्ध हो रहे थे और कोई कोई तो एक दूसरे की फोटो भी खींच रहे थे, अखबार में छपवाने के लिए.<br />
व्यापारी समझाने लगा,“बेटा ये टोपियां इज़्ज़तदार लोगों के लिए ले जा रहा था,तुम नकलची बंदरों के ये किसी काम की नहीं हैं.“<br />
बंदर खी खी करके हंसने और व्यापारी को चिढाने लगे. व्यापारी फिर समझाने लगा,“ भाईयो,पहले इन्हे ओढने के लायक बन कर आओ,फिर पहनना.ये सिर्फ ”इन्सानों के लिए हैं“<br />
बंदर बुरा मान गए कि विज्ञान तो हमें इन्सानों का पूर्वज बताता है और यह व्यापारी हमें इन्सान ही नहीं मान रहा. अब तो इसे टोपियां बिल्कुल नहीं लौटायेंगे.“<br />
अंकल जी, पुरानी कहानी में तो व्यापारी समझदार था और बंदर मूर्ख. उसने अपनी टोपी उतार कर फैंकी तो नकलची बंदरों ने भी अपनी अपनी टोपी उतार कर फैंक दी थी.लेकिन मैं अटक गया हूं क्योंकि मेरी कहानी का व्यापारी इतना समझदार नहीं है जबकि बंदर बहुत ही धूर्त<br />
हैं.वे इस फिराक में हैं कि कब व्यापारी अपनी टोपी उतार कर फैंके और वे उसे भी उठा ले जाएं.<br />
अंकल जी,व्यापारी की मदद करके कहानी पूरी करवा दें. व्यापारी को टोपियां वापिस न मिल पाए तो भी चलेगा लेकिन कहानी का अंत ऐसा हो कि टोपियों की गरिमा बनी रहे.कम से कम इतनी ज़रूर कि ये टोपियां इसके सिर से उसके सिर न हो जाएं.<br />
आपका अपना बच्चा <br />
मन का सच्चा <br />
अकल का कच्चा <br />
प्रदीप नील </div></div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-29666096487057198162011-10-16T21:22:00.000-07:002011-10-16T21:22:55.119-07:00कौन सा भारत, अन्ना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"> आदरणीय अन्ना अंकल,<br />
कल मैं बहुत रोया क्योंकि, फीस न दे पाने के कारण स्कूल से मेरा नाम कट गया.<br />
और रात को मेरे पापा घर आए, शराब पीकर .लेकिन वे आज मम्मी की बजाए नेताओं को चोर तथा भ्रष्ट बताते, गालियां देते आ रहे थे.<br />
मां गुस्से में तो थी ही, बोल दिया,“ तुम क्या कम हो? बच्चे की फीस की दारू पी गए.“<br />
बस यह सुनने की देर थी कि पापा ने मां को बहुत मारा.मां ने “घरेलू-हिंसा कानून“ का नाम लिया तो पापा ने एक और जड दिया और बोले, “ यह इंग्लैण्ड नहीं है,राम दुलारी.यह भारत है,भारत .“<br />
मैंने रोकना चाहा तो पापा ने मुझे भी मारा. मैंने भी ”बाल-हिंसा कानून“ का नाम लिया तो पापा ने फिर मारा. मैंने चिल्लाकर कहा “ 100 नंबर पर फोन करके पुलिस बुलाता हूं “ तो पापा ने एक और जड दिया और बोले,“ यह इंग्लैण्ड नहीं है, राम लुभाया. यह भारत है, भारत .“<br />
हमारा चिल्लाना सुनकर पडौसी भागकर आया तो पापा ने उसे भी मारा और बोले,“ यह इंग्लैण्ड नहीं है,राम औतार. वर्ना किसी के घर में यूं घुस आने पर जेल में होते. शुक्र मना कि यह भारत है, भारत.“<br />
अंकल जी, पापा ने तीन बार बोला ,“ यह भारत है, भारत. “ लेकिन वे किस भारत की बात कर रहे थे? मैंने तो किताबों में पढा था कि भारत वह देश है जहां नारी की पूजा होती है,बालकों पर दया, और पडौसियों से प्रेम.<br />
अंकल जी, कभी समय मिले तो मेरे पापा के कान खींचना और यह भी भी समझाना कि यह भारत ही है, इंग्लैण्ड नहीं .<br />
लेकिन जरा जल्दी करना क्योंकि मेरे पापा मारते बहुत हैं. मुझे मार से उतना डर नहीं लगता जितना किसी शराबी के मुंह से यह सुनकर लगता है,“ यह भारत है,भारत .“ <br />
</div><div style="text-align: left;">आपका अपना बच्चा </div><div style="text-align: left;">मन का सच्चा</div><div style="text-align: left;"><span></span>अकल का कच्चा </div><div style="text-align: left;">प्रदीप नील </div></div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-44393467244593969142011-10-15T07:29:00.000-07:002011-10-15T07:29:13.743-07:00नेता का करेक्टर ढीला<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;">आदरणीय अन्ना अंकल,<br />
कल मेरी गली के नेता जी के यहाँ शाम को जोर से स्पीकर पर यह गाना बजना शुरू हो गया “मैं करूं तो साला कैरेक्टर ढीला है“<br />
अंकल, पहले तो मैंने सोचा कि उनकी बिटिया का जन्मदिन होगा और इस गाने की ताल पर पूरा परिवार नाच रहा,जषन मना रहा होगा लेकिन फिर ध्यान आया कि इस अवसर पर इस गाने का क्या काम?जाकर देख ही लेते हैं कि माज़रा क्या है?<br />
अंकल,जाकर देखा, वहां तो सन्नाटा पसरा हुआ था, अंधेरे कोने में बैठे नेता जी खुद ही यह गाना गा रहे थे,पूरे ज़ोर से गला फाडकर मुझे तो उन पर बहुत दया आई। मुझे देखते ही फूट फूट कर रोने लगे । फिर आंखें पोंछकर बोले “बेटा,यह इलेक्षन इस बार मेरी तरफ से तुम्हे ही लडना होगा और सिर्फ तुम्ही क्यों,पूरे ही देश का भार अब तुम जैसे 18 साल से कम उम्र के बच्चों पर है।<br />
मैंने कहा”सर,कानून 18 से नीचे वालों को इस काम की इजाज़त नहीं देता मुझे क्षमा करें“<br />
नेता जी तुनक कर बोले“ अपने अन्ना से बोलो न कि इस का बिल भी ले आएं“<br />
मैंने पूछा ”सर, आपका मतलब क्या है,मैं समझा नहीं“<br />
नेता जी बोले“मेरा गाना सुनकर भी नहीं ?“ फिर अचानक तैश में आ गए और बोले “इस पूरे देश में शोर मचा है कि देश के सारे ही नेता चोर हैं। लेकिन है कोई 18 साल से उपर का ऐसा जो खुद किसी न किसी तरह के भ्रश्टाचार में न उलझा हो?“<br />
मैंने कहा“सर,हाल तो 18 से कम वालों का भी बढिया नहीं है। हम भी मौका मिलते ही पापा की ज़ेब से पैसे उडा लेते हैं,इम्तिहानों में नकल करते हैं और बाईक पूरा दिन स्कूटियों के पीछे घुमाते रहते हैं“<br />
नेता जी उलझन में दिखे,फिर बोले “तो अब क्या होगा?“<br />
मैंने कहा “सर,एक रास्ता है मैं अन्ना अंकल को खत लिखता हूं। वे कम से कम इतना तो ज़रूर ही कर देंगे कि अपने इस हलके के लिए एक नेता जुटा दें । अपने देष में न मिले तो पाकिस्तान से तो मंगवा ही देंगे ”<br />
यह सुनते ही नेता जी ज़ोर का ठहाका लगा दिया.<br />
अंकल जी,मैं एक बात नहीं समझ पाया कि रो रहे नेता जी ने इतना ज़ोर का ठहाका क्यों लगया। मैंने तो चिट्ठी लिख दी,सो आप तक पंहुचे<br />
<br />
आपका अपना बच्चा<br />
मन का सच्चा<br />
अकल का कच्चा<br />
- प्रदीप नील 9996245222</div></div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-39347699761852742662011-10-04T22:57:00.000-07:002011-10-04T22:57:01.320-07:00अन्ना, किसने पिटवाया मुझे ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"> आदरणीय अन्ना अंकल,<br />
आपके इस बच्चे की जान खतरे में है क्योंकि मेरी वज़ह से पहली बार मैदान में उतरा एक नया नेता चुनाव हार गया और अब वह मुझे मारना चाहता है. गलती सचमुच ही मेरी थी,जो आपके प्रभाव में आकर उसके लिए नीचे दिया गया चुनाव घोषणा-पत्र बना बैठा.<br />
(1) मैं किसी प्रकार के "साला-सालीवाद" में विश्वास नहीं करता.<br />
(2) बिजली,पानी तथा टैक्स-चोर मुझे यह सोचकर तो बिल्कुल वोट न दें कि मेरे जीतने के बाद उनके पौ-बारह हो जायेंगे.<br />
(3) नकली या मिलावटी घी,दूध तथा शराब बनाने वाले मुझे वोट देकर शर्मिंदा न हों.चुनाव जीता तो उन्हे भी अंदर जाना ही होगा.<br />
(4) सबसे बडी बात पर मतदाता गौर करें कि मुझे वोट देने से से पहले अपनी आत्मा में झांक कर देखें कि मुझे वोट क्यों देना चाहते हैं?<br />
अंकल जी, आप समझ ही गए होंगे कि बाकी और बातें जो मैंने लिखी,क्या रही होंगी?<br />
लगभग वही बातें जो मजबूत लोकतंत्र के लिए ज़रूरी होती हैं. इसके बाद मैं यह सोचकर मज़े से सो गया कि देश में आजकल अन्ना- आंधी चल ही रही है,मेरा पट्ठा जीतेगा और मुझे लाख दो लाख रूपए का इनाम तो पक्का ही देगा.<br />
लेकिन अंकल जी, उसके पक्ष में सिर्फ दो वोट आए और उन दो में से एक भी पता नहीं कौन डाल गया.?नेता जी को चुनाव हारने का दुख नहीं है,दुख सिर्फ इस बात का है कि उनकी घरवाली ने भी उन्हे वोट नहीं दिया. अब नेता जी चार लोगों से यही कहते घूम रहे हैं "मैंने साला-सालीवाद का नाम न लिया होता तो मैं चुनाव ज़रूर जीत जाता. घोषणा-पत्र का नंबर एक पढकर मेरी घरवाली तक ने वोट नहीं दिया और बाकी लोगों ने यह सोचकर वोट नहीं दिए कि जो अपनी घरवाली तक का वोट नहीं ले सकता उसे हम वोट क्यों दें?“,<br />
अंकल जी,यहां तक भी वह बेचारा मुझे माफ करने को तैयार है लेकिन मुश्किल यह है कि उसका बसा बसाया परिवार उजडने वाला है क्योंकि उसकी घरवाली चार दिन से यही पूछ रही है,”राम औतार एक वोट तो मान लिया तूने डाला होगा,लेकिन बताता क्यों नहीं कि दूसरा वोट कौन चुडैल डाल गई.?“<br />
अंकल जी, अब आप सिर्फ इतना बता दें कि अगली बार किसी का घोषणा-पत्र बनाने बैठूं तो कौन सी गलतियां न करूं.?<br />
वैसे कितना अच्छा रहे, अगर आप ही एक नमूना बनाकर भेज दें. आपका यह बच्चा और पिटने से बच जाएगा.</div><div style="text-align: left;"> आपका अपना बच्चा </div><div style="text-align: left;"> मन का सच्चा </div><div style="text-align: left;"> अकल का कच्चा </div><div style="text-align: left;"> -प्रदीप नील </div></div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-26284626363655677622011-10-03T02:28:00.000-07:002011-10-03T02:28:22.096-07:001000 रूपए का इनाम लोगे?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"></div><br />
आदरणीय अन्ना अंकल ,<br />
कल अखबार में फोटो छपा हुआ था जिसमें एक लाल बंदर हैट लगाए, काले घोडे पर बैठा मजे से गाजर खा रहा था.इस फोटो का शीर्षक बताने वाले को 1000 रू का इनाम देने की बात भी लिखी गई थी.<br />
अंकल जी, जिस देश में मात्र 50 रू के लिए आदमी को छुरा घोंप दिया जाता हो,वहां 1000 के लिए कागज़ को छुरा घोंपने वालों की क्या कमी ! मैं भी बिस्तर में लेटा 1000 रू के बारे में सोच रहा था.लेखक जब पैसे के बारे में सोच रहा होता है तो लोग यही अंदाज़ा लगाते हैं कि देश के हालात पर सोच रहा होगा.<br />
भगत सिंह ने भी यही सोचा,जब उन्होने मेरे सपने में आकर पूछा,“उसी देश के बारे में सोच रहे हो,जिसे हमने जान देकर आज़ाद करवाया था?“<br />
अंकल जी,मुझे तो बहुत शर्म आई. मैंने कहा,“हां सर, देश के साथ साथ 1000 रू के बारे में भी. अब देखिए न, इस फोटो का शीर्षक लिख कर पैसे पाना चाहता हूं“<br />
भगत सिंह ने फोटो देखा और हंस कर बोले,“इतना क्या सोच रहे हो?लिख दो भारतीय गधे पर बैठा अंगरेज़“<br />
मैंने दबी ज़ुबान से उनकी भूल सुधारने की कोशिश की,“ठीक से देखिए,सर.यह घोडा है..“<br />
भगत सिंह ने डपट दिया,“चुप रह ,मूर्ख .हम घोडों ने तो इन बंदरों को सवारी तो बहुत दूर, अपने पुट्ठों तक को हाथ नहीं लगाने दिया.यह सूट बूट पहनकर घोडा दिख ही रहा है,वास्तव में तो यह गधा ही है.“<br />
मैं चौंका,“गधा?“<br />
भगत सिंह ने कहा,“हां गधा. तुम तो जानते ही हो कि चालाक बंदर किसी न किसी पर तो हमेशा सवार रहते ही हैं.परन्तु,इन बंदरों के हाथ घोडे नहीं लगे तो इन्होने गधों का मेक अप किया,उन्हे हिनहिनाना सिखाया और सवारी करने लगे.गधे खुश कि वे घोडे हो गए,बंदर खुश कि उन पर गधों की सवारी का लांछन नहीं लगा“<br />
मैंने पूछा,“सर आप इनको पहचान कैसे लेते हो?“<br />
भगत सिंह बोले,“छेड कर देख लेना,सीधे दुलत्ती झाडेगा,और साथ ही अपनी खुद की भाषा पर भी उतर आएगा.“<br />
मैंने पूछा,“सर,बंदरों को ढोने में गधों को क्या मज़ा आता है?“<br />
भगत सिंह बोले,“यह इन गधों का प्राक्रतिक गुण है. किसी अपने स्तर के आदमी को ढोना पड जाए तो ये गधे बहुत ही विनम्र और दीन यानि गधे ही नज़र आते हैं.लेकिन वही गधा किसी थानेदार का सामान ढो ले तो खुद को थानेदार समझ अकडकर चलने लगता है.“<br />
अंकल जी, सच कहूं तो फोटो की असलियत जानकर अब मेरी 1000 तो क्या एक रूपया पाने की तमन्ना भी नहीं रही.लेकिन भगत सिंह ने जो शीर्षक बताया है,लिख कर भेजूंगा जरूर.मैं यह भी जानता हूं कि अखबार का संपादक मेरा यह शीर्षक पढ कर मुझे पागल समझेगा.कसूर उसका भी नहीं क्योंकि भगत सिंह संपादक के सपनों में आजकल नहीं आते. उनके सपनों में तो बिल्कुल नहीं जो स्वपन दिखने वाली सुंदरियों के आधे नंगे फोटो छापते रहते हैं और खुश होते रहते हैं कि नारी को सम्मान दे रहे हैं.<br />
वैसे अंकल जी,क्या ऐसा नहीं होना चाहिए कि भगत सिंह कम से कम, अध्यापक,नेता और मीडिया वालों के सपनों में तो अवश्य ही आएं<br />
आपका क्या ख्याल है?<br />
आपका अपना बच्चा<br />
मन का सच्चा <br />
अकल का कच्चा<br />
प्रदीप नील<br />
<br />
</div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-38125190823730712052011-09-27T00:45:00.000-07:002011-09-27T00:45:43.401-07:00सोना ? सरकार का या कुँभकरण का ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"></div><div style="text-align: left;">आदरणीय अन्ना अंकल,</div><div style="text-align: left;">हमारी कक्षा में एक लडकी पूछने लगी,“सर,सोने का विशेषण क्या होता है?“</div><div style="text-align: left;">सर जी ने दो जवान बेटियों की शादी करनी है, 10-10 तोले सोना तो देना ही होगा.इधर सोने का भाव छंलागें मार रहा है. उसी चिंता में खोए हुए होंगे. बोले,“बिटिया,सोने का विशेषण क्या पूछती हो, आजकल तो इसका भाव पूछो,भाव.“</div><div style="text-align: left;">सर जी जिस अखबार में सोने का भाव देखते हैं,वही अखबार लडकी भी पढती है. उसी अखबार में ब्यूटी-पार्लर के नाम पर देह-व्यापार के विज्ञापन भी छपते हैं,जहां हर चीज़ के रेट भी लिखे रहते हैं. लडकी को बहुत शर्म आई लेकिन इतना ज़रूर बोला,“छिः सर, मुझे नहीं पता था आप टीचर होकर भी इतना गंदा सोचते हैं.“</div><div style="text-align: left;">सर चश्मा पोंछते हुए बोले,“इसमें टीचर क्या करेगा,बेटा?ठीक है अपने बेटे के समय दहेज़ नहीं लूंगा.लेकिन बेटियों को तो सोना...“</div><div style="text-align: left;">लडकी तुरंत समझ गई. बोली,“सारी सर, अब सोने का विशेषण बता ही दीजिए.“</div><div style="text-align: left;">सर मुस्कुरा कर बोले,“ सुनहरा“</div><div style="text-align: left;">लडकी बोली,“यह तो मैं भी जानती हूं,सर .मैं उस सोने का नहीं बल्कि कुंभकर्ण वाले सोने का विशेषण पूछ रही थी.“</div><div style="text-align: left;">सर फिर उलझ गए.इस सोने का विशेषण उन्हे नहीं पता.उन्होने ईमानदारी से स्वीकार भी कर लिया कि नहीं जानते. हां,किसी से पूछ कर बतायेंगे.</div><div style="text-align: left;">लडकी भी जानती है कि टीचर होने का मतलब यह नहीं होता कि उसे सब कुछ आता हो. वह मुस्कुरा कर बोली,“ठीक है,सर जी“</div><div style="text-align: left;">आजकल लोकपाल बिल पर भी यही हो रहा है, अंकल जी. आप सो रहे कुंभकर्ण वाले सोने से चिंतित हैं,जबकि सरकार रोजाना चढ्ते जा रहे मंहगे सोने से. सरकार को जब आप वाले सोने का विशेषण पता चलेगा, आप को बता देगी.लेकिन तब और मंहगे हो चुके सोने का भाव जानकर आप दंग मत रह जाना.</div><div style="text-align: left;">सोना नींद उडाता ही है.वह चाहे दहेज़ वाला हो या कुंभकर्ण वाला</div><div style="text-align: left;"> आपका अपना बच्चा</div><div style="text-align: left;"> मन का सच्चा</div><div style="text-align: left;"> अकल का कच्चा</div><div style="text-align: left;"> - प्रदीप नील</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><br />
</div></div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-41977426189179303022011-09-27T00:36:00.000-07:002011-09-27T00:36:43.936-07:00जन लोकपाल बिल और राम ओतार का लोटा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"></div><div style="text-align: left;">आदरणीय अन्ना अंकल,</div><div style="text-align: left;">लोग बेशक कहते हों कि आप मराठा हैं,लेकिन मुझे तो आप असली हरियाणवी ही लगते हैं.बता ही देता हूं,क्यों?</div><div style="text-align: left;">हमारे पडौसी राम औतार के यहां चोरी हो गई.तफ्तीश पर आये थानेदार ने पूछा“क्या क्या चोरी हुआ?“</div><div style="text-align: left;">राम औतार ने कहा”लोटा “</div><div style="text-align: left;">थानेदार का अगला प्रशन आना ही था,“लोटा,और..?“</div><div style="text-align: left;">राम औतार ने उसे बेवकूफ समझ्कर गुस्से से घूरा और बोला,“पहले लोटा तो ढूंढ ला.“</div><div style="text-align: left;">अंकल जी, आप भी राम औतार के लोटे की तरह जनलोकपाल बिल पर ही अटक कर खडे हो गए.</div><div style="text-align: left;"> थानेदार घर आया हुआ था. राम औतार लोटे के चक्कर में ऐसा उलझा कि यह बताना तो भूल ही गया कि उसके यहां से दस तोले सोने की चेन और दो लाख की नकदी भी चोरी हुई है.</div><div style="text-align: left;">अंकल जी, आपके पास तो इतने थानेदार आये थे,राम लीला मैदान में ! आप चाहते तो कह सकते थे कि लोटा तो खोज ही लाओ लेकिन हमारी संस्क्रिती,सभ्यता जैसी दस तोले की चेन खोजना मत भूल जाना. महाजन के सूद की तरह बढ रही आबादी और इसके कारण फैली 300 तरह की बीमारियां(यहां तक कि भ्रष्टाचार भी उन्ही में से एक है) के इलाज़ की दस तोले की चेन, अन्ना, अंकल !</div><div style="text-align: left;">अंकल जी,कन्या-भ्रूण हत्या,दहेज-प्रथा,प्रदूषण , आनर-किलिंग,मिलावटी व नकली चीजों के उत्पादन इत्यादि रोकने की जो दो लाख की नकदी गुम है, आप वो भी गिना सकते थे.लेकिन आप लोटे के इलावा किसी बात को याद ही नहीं कर पाए.</div><div style="text-align: left;">वैसे अंकल जी, राम औतार के यहां से थानेदार चलने लगा तो उसकी पत्नी राम दुलारी ने चेन तथा चोरी की बात भी कानों में से निकाल दी थी. आपके पास भी किरण और अरविंद जैसे समझदार भाई बहन तो थे ही,वे ही गिना देते कि जो समाज की,देश की जो चेन और नकदी गुम हुई है,वह भी खोज ही लेना.</div><div style="text-align: left;">अंकल जी,एक बार ,सिर्फ एक बार कह देते कि नेताओं पर निगाह तो मैं रख लूंगा,तुम भी घर जाकर खुद पर और अपने परिवार पर निगाह रख लेना.</div><div style="text-align: left;">मैं तो यही दुआ कर रहा हूं कि राम औतार के यहां फिर से चोरी हो जाए और इस बार राम दुलारी नहीं बल्कि,राम औतार खुद चेन तथा नकदी की बात करे. </div><div style="text-align: left;"> आपका अपना बच्चा</div><div style="text-align: left;"> मन का सच्चा</div><div style="text-align: left;"> अकल का कच्चा</div><div style="text-align: left;"> - प्रदीप नील</div><div style="text-align: left;"><br />
</div></div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-6377050675944897432011-09-27T00:28:00.000-07:002011-09-27T00:28:44.304-07:00स्तन दो ,बच्चे तीन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"></div><div style="text-align: left;"> आदरणीय अन्ना अंकल,</div><div style="text-align: left;">देश के नेताओं को भी कहना कि ज़रा सोच कर बोला करें.</div><div style="text-align: left;"> परसों ही एक नेता ने बोल दिया कि अपने देश की आबादी बहुत तेज रफ्तार से बढ रही है और इसे यूं समझो कि हर साल एक आस्ट्रेलिया भारत में आ जुडता है.</div><div style="text-align: left;"> अंकल जी, आबादी की रफ्तार वाली बात पर तो किसी ने ध्यान नहीं दिया ,लेकिन आस्ट्रेलिया आने की खबर जंगल की आग की तरह फैल गई. राम औतार तब से शहर की गलियां छान रहा है कि आस्ट्रेलिया आया है तो गोरी मेमें भी आई होंगी.सारा दिन गालियां देने वाली काली-कलूटी राम दुलारी को तलाक देकर अंगरेज़ी में लव यू,लव यू करने वाली किसी मेम से ही ब्याह करा लूं.</div><div style="text-align: left;">अंकल जी,तब से मैं भी सोच रहा हूं कि आस्ट्रेलिया आया है तो कम भीड वाली बसें,साफ -सुथरे स्कूल,सड़क पर न थूकने वाले सभ्य और शिक्षित बच्चे भी आये होंगे.साथ में गरीबी दूर करने को डालर. अब तो मेरा बचपन ही संवर जाएगा. अंकल जी, आस्ट्रेलिया यहां आए दो दिन हो गए लेकिन,देश की तस्वीर तो पहले से भी बदतर दिख रही है.चारों तरफ भीड ही भीड,यहां तक कि शहर के पेशाब घरों तक पर भी लाईन. और वह भी तब जब कुछ बहादुर लोग वहां भी उकडू हो जाते हैं,जहां लिखा होता है,”गधे के पूत,यहां मत ...“</div><div style="text-align: left;"> यही तो गलत बात की,नेता ने. अरे कह देते कि हर साल तो दूर आस्ट्रेलिया एक बार भी भारत नहीं आया और न ही कभी आयेगा.नेता जी को कहना चाहिए था,“ सावधान, दक्षिणी अफ्रीका या ब्राज़ील आ रहा है.और वह इसलिए आ रहा है कि वहां ज़्यादा आबादी के कारण खाने को नहीं मिल रहा.“</div><div style="text-align: left;"> वैसे, अंकल जी, अपने देश की आबादी बढने की रफ्तार एक दिन आपके मुंह से भी कहला ही देगी कि देश की बदहाली की ज़िम्मेवार वही नालायक औरत है जो पहले एक सैंकिंड में एक बच्चा दिया करती, अब दो देने लगी है.और थोड़े ही दिनों में तीन भी देने लगेगी </div><div style="text-align: left;">परमात्मा ने हर माता को स्तन भी दो ही दिए हैं.दो बच्चों को तो वह दूध पिला देगी लेकिन जब तीसरा आयेगा और उसे दूध नहीं मिलेगा तो वह इसके लिए कोई भ्रष्ट तरीका ही खोजेगा.</div><div style="text-align: left;">अंकल जी,बच्चा बडा होकर भ्रष्टाचार सीखता है तभी देश का यह हाल है.क्या होगा अगर वह पैदा होते ही सीख लेगा. </div><div style="text-align: left;">मां के दूध से शुरू हुआ भ्रष्टाचार कहां तक जाएगा,इतना तो आप भी जानते हैं. तभी तो कहता हूं कि अपने देश के नेताओं को भी कहना कि जरा सोच कर बोला करें.</div><div style="text-align: left;"> आपका अपना बच्चा</div><div style="text-align: left;"> मन का सच्चा</div><div style="text-align: left;"> अकल का कच्चा</div><div style="text-align: left;"> - प्रदीप नील</div><div><br />
</div></div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-36174943646047310622011-09-27T00:18:00.000-07:002011-09-27T00:18:59.677-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"></div><div style="text-align: left;"> आदरणीय अन्ना अंकल,</div><div style="text-align: left;">हमारी गली का राम औतार अपना काला धन जब्त कराने के लिए अनशन कर रहा है,लेकिन सरकार है कि इसे काला धन ही नहीं मान रही.</div><div style="text-align: left;">राम औतार ने परसों गली के चौक पर स्टेज़ बनाई,लाऊड-स्पीकर लगाया और इस पर अपने अनशन की घोषणा करते हुए सरकार के खिलाफ भाषण शुरू कर दिया. तमाशा देखने वालों को अपना समर्थक समझकर जोश में भर गए और बोले कि जब तक उनका काला-धन जब्त नहीं किया जायेगा,वे प्राण त्याग देंगे लेकिन हटेंगे नहीं.</div><div style="text-align: left;">मरे से मरे भारतीय के घर भी 5-7 तोले सोना और आधा किलो चांदी दबी ही रहती है.लोग डरे कि खुद भी मरेगा और हमें भी मरवायेगा.यह यहां से हटे तो उनका भी पिण्ड छूटे. बस किसी ने खबरिया चैनल को फोन कर दिया.चैनल वालों के पास कोई धमाकेदार न्यूज़ नहीं थी,सो बेचारों ने छतरी की तरह राम औतार पर कैमरा तान दिया.और एंकर चिल्लाने लगा,“धन्य है यह देशभक्त जिसका विवेक जागा और अपना काला धन सौंपने को तैयार है. सरकार कब तक छुप कर तमाशा देखेगी?उसे आना ही पडेगा,इसी ज़गह,इसी चौक में....“</div><div style="text-align: left;">हार कर पुलिस-कप्तान को आना पडा.उन्हे लेकर राम औतार अपने घर की और चले. पीछे उनके समर्थकों की भीड. राम औतार के घर के आंगन में उनकी पत्नी खडी थी,मोटी और काले रंग की. राम औतार ने उसकी तरफ इशारा करते हुए हुए कहा,“ यही है मेरा काला धन.जब्त कर लो इसे.“</div><div style="text-align: left;">कप्तान साहब का जी तो किया होगा कि इसे अभी एक झन्नाटेदार थप्पड दूं,लेकिन कैमरे के सामने यही कहा,“यह आपकी पत्नी है,बडे भाई. यह काली तो है लेकिन...“</div><div style="text-align: left;">राम औतार उन्हे समझाने लगे,“देखिए,शास्त्रों मे धन को लक्ष्मी कहा गया है,यह काली है तो काला धन हुआ कि नहीं?इसका नाम तो लक्ष्मी है ही,इसके बाप से मैंने मोटा धन दहेज़ के रूप में यानि दो नंबर में लिया था. अब बताओ,यह किस हिसाब से काला-धन नहीं है?“</div><div style="text-align: left;">कप्तान साहब ने हाथ जोडे,“भाई साहब, काली औरतों को जब्त करने का कोई कानून नहीं है,ना ही कोई बिल.“</div><div style="text-align: left;">राम औतार अडे हुए हैं कि बिल नहीं है तोअब बना लो,चारों तरफ इतने बिल बन रहे हैं ,एक और सही ..</div><div style="text-align: left;">अंकल आप जूस पिला दें तो राम औतार अनशन तोड सकते हैं. ज़रा जल्दी आना क्योंकि टी वी वाले बहुत बोर कर रहे हैं, उन्होंने राम औतार के नाम पूरी स्क्रीन की रजिस्ट्री करा रखी है </div><div style="text-align: left;"> आपका अपना बच्चा </div><div style="text-align: left;"> मन का सच्चा </div><div style="text-align: left;"> अकल का कच्चा</div><div style="text-align: left;"> प्रदीप नील </div><div style="text-align: left;"><br />
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</span></div></div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-84340878404032673392011-09-27T00:07:00.000-07:002011-09-27T00:07:20.058-07:00जूता पेल पालबिल की महिमा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"></div><div style="text-align: left;">आदरणीय अन्ना अंकल,</div><div style="text-align: left;">लोकपाल और जन लोकपाल के झगडे में हमारे मुहल्ले के आंखों के डा. राम औतार का <b>“जूत्तापेल पाल बिल“</b> दब कर रह गया था. आज उनसे हुए इंटरव्यू से इसके बारे में देश को बता रहा हूंः</div><div style="text-align: left;">प्र0ः डा. साहब आपके इस “जूत्तापेल पाल बिल“ का अर्थ क्या है?“</div><div style="text-align: left;">उ0ः हर भारतीय इसके नाम का अर्थ समझता है. आप इंग्लैण्ड से आए हैं,क्या?“</div><div style="text-align: left;">प्र0ः माफ करना, आपको इस बिल का विचार कहां से सूझा?</div><div style="text-align: left;">उ0ःमैं आंखों की दवा के लिए जडीद्दबूटियां खोजने एक गांव गया हुआ था, तभी इस बिल के बारे में ज्ञान हुआ.</div><div style="text-align: left;">प्र0ः बहुत खूब. ज़रा बतायेंगे,कैसे?</div><div style="text-align: left;">उ0; एक नौजवान की नज़र इतनी कमज़ोर हो गई थी कि उसे हर बहू-बेटी अपनी घरवाली दिखने लगी.इस बिल का प्रयोग होते ही नज़र इतनी तेज हो गई कि वही बहू-बेटियां उसे मां-बहन दिखने लगी.</div><div style="text-align: left;">प्र0ः कमाल है. वैसे इसे लागू करने वाला लोकपाल कौन होता है?</div><div style="text-align: left;">उ0ः गांव का कोई भी आदमी जिसके चेहरे पर मूंछ और पांव में जूत्ता हो,इसका लोकपाल हो सकता है.</div><div style="text-align: left;">प्र0ः क्या यह खर्चीला बिल है?</div><div style="text-align: left;">उ0ः बिल्कुल नहीं. दुनिया का सबसे किफायती और टिकाऊ बिल यही है.इसमें किसी पुलिस या अदालत की भी ज़रूरत नहीं होती.</div><div style="text-align: left;">प्र0ःइसके खिलाफ कहीं अपील की जा सकती है?</div><div style="text-align: left;">उ0ः जरूरत ही नहीं पडती,हालांकि यह “नो अपील,नो वकील,नो दलील“ पर आधारित है.सच कहूं तो यह बिल इतना प्यारा है कि जिस पर लागू होता है,वह दुनियादारी भूलकर परमात्मा का कीर्तन करने लगता है.</div><div style="text-align: left;">प्र0ःयह कहां-कहां लागू होता है?</div><div style="text-align: left;">उ0ः सिर्फ गांवों में. शहर के वे इलाके जहां गांव से आ बसे लोगों की संख्या ज्यादा है, वहंा अभी भी इस बिल के प्रति श्रद्धा देखी जा सकती है.</div><div style="text-align: left;">प्र0ः जो गांव वाले कई साल पहले शहर आ गए थे,वो लोग...?</div><div style="text-align: left;">उ0ः उनका विष्वास इस बिल के बच्चे “जूत्ताउछाल पाल“ में है.इसमें जूत्ता मारा भी नहीं जाता और लग भी जाता है.</div><div style="text-align: left;">प्र0ः क्या?बिल का बच्चा? यानि,कुछ कमज़ोर..?</div><div style="text-align: left;">उ0ः हर्गिज़ नहीं, आखिर बच्चा भी किसका है?बस इतनी कमी है कि जूत्ता वापिस नहीं मिलता. ऐसे में दूसरा जूत्ता हाथ में लेकर नंगे पांव वापिस आना पडता है.</div><div style="text-align: left;">प्र0ः शहर के लोगों..?</div><div style="text-align: left;">उ0ः उनका बिल “कमज़ोरपाल बिल“ है,जिस पर कल चर्चा करेंगे. आज्ञा दें.जयहिंद</div><div style="text-align: left;"> आपका बच्चा ,</div><div style="text-align: left;"> मन का सच्चा </div><div style="text-align: left;"> अकल का कच्चा </div><div style="text-align: left;"> प्रदीप नील </div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><b><br />
</b></div></div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-90593428819732984872011-09-26T07:39:00.000-07:002011-09-26T07:39:30.205-07:00कुंवारों का घोषणा -पत्र<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"></div><div style="text-align: left;"> आदरणीय अन्ना अंकल,</div><div style="text-align: left;"> हमारे पडोसी अंकल राम ओतार ने मुझे कल ही चौक में पीटा और वह भी ,चप्पलों से.</div><div style="text-align: left;"> असल में नंगे-भूखे आठ बच्चों के पिता राम ओतार शराब में धुत होकर सरकार को कोस रहे थे कि ज़ालिम सरकार उनके बच्चों की शिक्षा ,भोजन और वस्त्र के लिए कुछ नहीं कर रही.मैं समझदार होता तो बडे लोगों की तरह घर बैठा मुस्कुराता रहता लेकिन मैं ठहरा नादान बालक.मैंने उनको तसल्ली देते हुए कहा“ठीक कर रहे हो अंकल, आप. भला यह क्या बात हुई कि आपके यहां आठ बच्चे पैदा तो करे सरकार और उन्हे पालें आप ?</div><div style="text-align: left;"> राम ओतार अंकल थोडा शरमाए और मेरी भूल सुधारते हुए बोले“बच्चे तो मैंने ही पैदा किए हैं,सरकार ने नहीं“</div><div style="text-align: left;"> मुझसे एक गलती और हो गई, पूछ बैठा“ तो क्या हुआ?आपने बच्चे तो सरकार से पूछ कर ही पैदा किए होंगे ?</div><div style="text-align: left;">उनका नशा थोडा उतरा,बोले“नहीं, इसमें पूछना कैसा?“फिर अचानक उन्हे लगा कि मैं उनका हितेषी नहीं बल्कि सरकार का चमचा हूं अतः यह सरकार बदलनी ही चाहिए क्योंकि यह सरकार निकम्मी है.</div><div style="text-align: left;"> आम तौर पर मैं इस बहस में नहीं पडता कि सरकार कैसी है पर मेरी कुंडली में पिटने के प्रबल योग बने हुए थे,इसलिए कह बैठा“हाँ , सरकार तो निकम्मी है ही,जो बच्चों की फीस के पैसों की दारू पीने वालों को जूत्ते नहीं मारती“</div><div style="text-align: left;">मेरे इस बैया-वाक्य से राम ओतार-बंदर अंकल को वही शिक्षा मिली जो आम तौर पर औसत भारतीय को मिला करती है और उन्होने वही किया जिसके लिए पूरे विश्व में हमारे नाम के झण्डे गडे हैं और उन्होने चौक में मुझे चप्पलों से पीटा.</div><div style="text-align: left;"> अंकल जी , देश की कुल आबादी के 19 प्रतिशत यानि लगभग २४ करोड़ युवक इस साल शादी करने लायक हो जायेंगे. मैं नहीं चाहता कि पांच-सात बाद मेरे जैसा कोई बालक उनसे पिटे. इसलिए उन कुंवारों के लिए यह शपथ-पत्र बना रहा हूं ताकि वक्त पर काम आएः</div><div style="text-align: left;"> "मैं फलाना सिंह वल्द धमकाना सिंह पूरे होश में घोषणा करता हूं कि जिस तरह किसी डिप्लोमा में एड्मिशन लेने का मतलब पास हो जाना नहीं होता ,उसी तरह शादी का मतलब भी की ५-६ साल में 5-6 बच्चे पैदा कर देना नहीं होता.मैं उतने ही बच्चे पैदा करूंगा,जितने पाल सकता हूं. और् सरकार को अपनी आया बिल्कुल नहीं समझूंगा. जय हिंद </div><div style="text-align: left;">अंकल जी,यह घोषणा -पत्र उन युवाओं तक पहुंचाना अब का काम.</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"> आपका अपना बच्चा</div><div style="text-align: left;"> मन का सच्चा</div><div style="text-align: left;"> अकल का कच्चा</div><div style="text-align: left;"> - प्रदीप नील</div><div style="text-align: left;"><br />
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</div></div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-84492987310322580722011-09-26T07:22:00.000-07:002011-09-26T07:22:20.937-07:00बिल का अचार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
आदरणीय अन्ना अंकल,<br />
आप से तो मैं इतना नाराज़ हूं कि बात नहीं करूंगा,क्योंकि भ्रटाचार के खिलाफ आपके अभियान ने मुझे पिटवा दिया.<br />
<div style="text-align: left;"> अंकल जी,मैं और पापा नया टी.वी खरीदने बाज़ार गए. रेट की बात चली तो दूकानदार पूछने लगा,“ आपको बिल चाहिए?</div> पापा बोले,“मैं कोई चूहा हूं,जो बिल चाहिए.भई हम तो शेर-बब्बर हैं “<br />
वहां खडे बीस ग्राहकों के साथ दूकानदार भी हंसा और टी वी पैक करने लगा.मुझे बात समझ ही नहीं आई थी,इसलिए पूछ लिया, “पापा यह बिल का क्या चक्कर है?<br />
पापा मस्ती में थे,लापरवाही से हंसकर बोले,“कुछ नहीं यार,बिल नहीं लेंगे तो टैक्स के 7-8 हज़ार बच जायेंगे.“<br />
मैंने ज़ोर से चिल्लाकर बोल दिया,“तो हम टैक्स चोरी कर रहे हैं? पापा, यह तो भ्रष्टाचार है.“<br />
दूकानदार पुचकारने लगा ,“नहीं बेटा,यह जन जन का व्यवहार है, हमारे लिए व्यापार है“<br />
अंकल जी,एक बात तो आप भी मानेंगे कि अपने देश में शर्म अभी बची हुई है. पापा इतने शर्मिंदा हुए कि बिल कटाकर ही घर आए.मैं भी बहुत खुश हुआ कि मेरे पापा चोर नहीं हैं.<br />
लेकिन, अंकल जी,घर आते ही पापा ने मुझे पीटा और मम्मी पर चिल्लाने लगे,“यह कैसा हरामज़ादा पैदा किया,जिसने भरे बाज़ार मेरी नाक कटा दी और 7000 की मंजी ठुकवा दी.“ उसी गुस्से में उन्होने वह बिल मम्मी के मुंह पर दे मारा और बोले“ इस बिल का अचार डाल लेना और भ्रटाचार के इस ठेकेदार को एक महीना अब इसी “बिलाचार“ के साथ रोटी देना.“<br />
अंकल जी, आपने राम लीला मैदान से जब भ्रष्टाचार की बात की थी तो इससे मिलते-जुलते'बिलाचार'का नाम क्यों नहीं लिया? अगर ले देते तो आपका यह बच्चा अपने बाप से न पिटता.इसीलिए मैं आपसे नाराज़ हूं.<br />
आप भूल गए होंगे,कोई बात नहीं लेकिन फिर कभी टी वी वालों से बात करो तो इससे मिलते जुलते जितने भी अचार हैं,सबका ज़िक्र जरूर कर देना.कहीं ऐसा न हो कि मुझे या मेरे किसी भाई को अगले महीने इन्कमटैक्साचार,बस या ट्रेन के टिकटाचार के साथ सूखी रोटी खानी पडे.<br />
आपका अपना बच्चा<br />
मन का सच्चा<br />
अकल का कच्चा<br />
- प्रदीप नील<br />
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</div></div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8258916431861973356.post-83044171446113484422011-09-26T07:14:00.000-07:002011-09-26T07:14:10.147-07:00मेरे १२५ करोड़ बाप<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div>आदरणीय अन्ना अंकल,</div><div>कभी कभी मेरे मन में ख्याल आता है कि सरकार मेरी मां जैसी है.देश के 125 करोड लोगों को पिता समान मानने को मन तो नहीं करता पर लोग एहसास करा ही देते हैं कि वे मेरे पिता समान ही नहीं बल्कि हैं ही मेरे बाप</div><div>अंकल जी,मेरे पिता कुछ ज्यादा ही मिलनसार हैं इसलिए हर शाम घर लौटते समय उनके साथ एक दो दोस्त ज़रूर ही चले आते हैं मेरी मां इस बात को जानती है और एक्स्ट्रा खाना तैयार रखती है। लेकिन होता यह है कि हम ज्यों ही खाना खाने बैठते हैं,उनका एकाध दोस्त और आ धमकता है ।मां दाल में पानी मिलाकर तेजी से रोटियां सेंकने जुट जाती है, अन्नपूर्णा का धर्म निभाते हुए स्वाभाविक है कि थोडी देर हो जाती है</div><div> लेकिन अंकल जी, इतनी देर में पापा चिल्लाने लग जाते हैं ”बेवकूफ औरत,तुम दिन भर खाली पडी करती क्या हो? अरे अतिथी तो देव होते हैं,शास्त्रों तक में लिखा है। मेरा घर सोने की चिडिया है,फिर भी हम भूखे? सुबह उठते ही तुम्हे तलाक नहीं दिया तो मेरा नाम भी राम औतार नहीं“</div><div>तलाक का नाम आते ही विपक्ष,यानि हमारे सामने वाले घर से जवान कन्या जिसका कहीं रिश्ता नहीं हो रहा,चीनी मांगने के बहाने पिताजी को शक्ल दिखाने आ जाती है कि राम दुलारी को तलाक दो तो हमारा ख्याल ज़रूर रखना ज़रूर रखना जी“ </div><div>अंकल जी, माफ करना,बात तो सरकार की हो रही थी</div><div>सरकार बेचारी साडी लपेटकर,सुहागन बिंदी लगाकर रोटियां सेंकने बैठती है तो ये मेरे बाप के दोस्त चले आते हैं, चोथी रोटी पर मेरा बाप चिल्लाता है “120 नहीं,121 करोड का खाना तैयार करो मां के हाथ पैर फूल जाते हैं चार रोटियों का आटा गुंथता ही है कि मेरे बाप कि आवाज़ आती है “राम दुलारी,122 करोड मां दाल में पानी डालती है कि मेरा बाप फिर चिल्लाता है“राम दुलारी,122 करोड और फिर 124..125...126</div><div>अंकल ऐसे में तलाक तो तय है आप भी मानेंगे कि सामने वाली छमकछल्लो भी ऐसे'मिलनसार'आदमी से शादी करके चार ही दिन इतरा पाएगी,फिर तलाक तो उससे भी होकर ही रहेगा.चाहे कितनी भी चुस्त औरत मेरी मां बन ले,पापा से शाबासी नहीं ले पाएगी. कसूर पापा का भी नहीं,दुनिया में आए हैं तो मिलनसार तो होना ही पडता है.</div><div>ऐसे में कोई जब मुझसे पूछता है ”मुन्ना राज़ा,तुम किसके बेटे हो,मम्मी के या पापा के ?“ तो मैं ज़ोर से हंसकर ताली बज़ाता हूं और कहता हूं “मम्मी का,क्योंकि मेरा कोई बाप नहीं है“</div><div>लेकिन अंकल,मैं तो शुरू में ही कह चुका कि देश के 125 करोड लोगों को पिता समान मानने को मन तो नहीं करता पर लोग एहसास करा ही देते हैं कि वे मेरे पिता समान ही नहीं बल्कि हैं ही मेरे बाप</div><div>अंकल मेरे इन बापों का कुछ हो सकता है? </div><div><br />
</div><div> आपका अपना बच्चा</div><div> मन का सच्चा</div><div> अकल का कच्चा</div><div> - प्रदीप नील</div><div><br />
</div></div>प्रदीप नील वसिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/08819729364422837799noreply@blogger.com0