सोमवार, 26 सितंबर 2011

बिल का अचार


 आदरणीय अन्ना अंकल,
   आप से तो मैं इतना नाराज़ हूं कि बात नहीं करूंगा,क्योंकि भ्र”टाचार के खिलाफ आपके अभियान ने मुझे पिटवा दिया.
  अंकल जी,मैं और पापा  नया टी.वी खरीदने बाज़ार गए. रेट की बात चली तो दूकानदार पूछने लगा,“ आपको बिल चाहिए?
   पापा बोले,“मैं कोई चूहा हूं,जो बिल चाहिए.भई हम तो ‘शेर-बब्बर हैं “
वहां खडे बीस ग्राहकों के साथ दूकानदार भी हंसा और टी वी पैक करने लगा.मुझे बात समझ ही नहीं आई थी,इसलिए पूछ लिया, “पापा यह बिल का क्या चक्कर है?
   पापा मस्ती में थे,लापरवाही से हंसकर बोले,“कुछ नहीं यार,बिल नहीं लेंगे तो टैक्स के 7-8 हज़ार बच जायेंगे.“
   मैंने ज़ोर से चिल्लाकर बोल दिया,“तो हम टैक्स चोरी कर रहे हैं? पापा, यह तो भ्रष्टाचार  है.“
   दूकानदार पुचकारने लगा ,“नहीं बेटा,यह जन जन का व्यवहार है, हमारे लिए व्यापार है“
अंकल जी,एक बात तो आप भी मानेंगे कि अपने दे‘श  में ‘शर्म अभी बची हुई है. पापा इतने ‘शर्मिंदा हुए कि बिल कटाकर ही घर आए.मैं भी बहुत खु‘श  हुआ कि मेरे पापा चोर नहीं हैं.
लेकिन, अंकल जी,घर आते ही पापा ने मुझे पीटा और मम्मी पर चिल्लाने लगे,“यह कैसा हरामज़ादा पैदा किया,जिसने भरे बाज़ार मेरी नाक कटा दी और 7000 की मंजी ठुकवा दी.“ उसी गुस्से में उन्होने वह बिल मम्मी के मुंह पर दे मारा और बोले“ इस बिल का अचार डाल लेना और भ्र”टाचार के इस ठेकेदार को एक महीना अब इसी “बिलाचार“ के साथ रोटी देना.“
अंकल जी, आपने राम लीला मैदान से जब भ्रष्टाचार की बात की थी तो इससे मिलते-जुलते'बिलाचार'का नाम क्यों नहीं लिया? अगर ले देते तो आपका यह बच्चा अपने बाप से न पिटता.इसीलिए मैं आपसे नाराज़ हूं.
   आप भूल गए होंगे,कोई बात नहीं लेकिन फिर कभी टी वी वालों से बात करो तो इससे मिलते जुलते जितने भी अचार हैं,सबका ज़िक्र जरूर कर देना.कहीं ऐसा न हो कि मुझे या मेरे किसी भाई को अगले महीने इन्कमटैक्साचार,बस या ट्रेन के टिकटाचार के साथ सूखी रोटी खानी पडे.
                                 आपका अपना बच्चा
                                 मन का सच्चा
                                 अकल का कच्चा
                                  - प्रदीप नील



                                 

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