आदरणीय अन्ना अंकल ,
कल अखबार में फोटो छपा हुआ था जिसमें एक लाल बंदर हैट लगाए, काले घोडे पर बैठा मजे से गाजर खा रहा था.इस फोटो का शीर्षक बताने वाले को 1000 रू का इनाम देने की बात भी लिखी गई थी.
अंकल जी, जिस देश में मात्र 50 रू के लिए आदमी को छुरा घोंप दिया जाता हो,वहां 1000 के लिए कागज़ को छुरा घोंपने वालों की क्या कमी ! मैं भी बिस्तर में लेटा 1000 रू के बारे में सोच रहा था.लेखक जब पैसे के बारे में सोच रहा होता है तो लोग यही अंदाज़ा लगाते हैं कि देश के हालात पर सोच रहा होगा.
भगत सिंह ने भी यही सोचा,जब उन्होने मेरे सपने में आकर पूछा,“उसी देश के बारे में सोच रहे हो,जिसे हमने जान देकर आज़ाद करवाया था?“
अंकल जी,मुझे तो बहुत शर्म आई. मैंने कहा,“हां सर, देश के साथ साथ 1000 रू के बारे में भी. अब देखिए न, इस फोटो का शीर्षक लिख कर पैसे पाना चाहता हूं“
भगत सिंह ने फोटो देखा और हंस कर बोले,“इतना क्या सोच रहे हो?लिख दो भारतीय गधे पर बैठा अंगरेज़“
मैंने दबी ज़ुबान से उनकी भूल सुधारने की कोशिश की,“ठीक से देखिए,सर.यह घोडा है..“
भगत सिंह ने डपट दिया,“चुप रह ,मूर्ख .हम घोडों ने तो इन बंदरों को सवारी तो बहुत दूर, अपने पुट्ठों तक को हाथ नहीं लगाने दिया.यह सूट बूट पहनकर घोडा दिख ही रहा है,वास्तव में तो यह गधा ही है.“
मैं चौंका,“गधा?“
भगत सिंह ने कहा,“हां गधा. तुम तो जानते ही हो कि चालाक बंदर किसी न किसी पर तो हमेशा सवार रहते ही हैं.परन्तु,इन बंदरों के हाथ घोडे नहीं लगे तो इन्होने गधों का मेक अप किया,उन्हे हिनहिनाना सिखाया और सवारी करने लगे.गधे खुश कि वे घोडे हो गए,बंदर खुश कि उन पर गधों की सवारी का लांछन नहीं लगा“
मैंने पूछा,“सर आप इनको पहचान कैसे लेते हो?“
भगत सिंह बोले,“छेड कर देख लेना,सीधे दुलत्ती झाडेगा,और साथ ही अपनी खुद की भाषा पर भी उतर आएगा.“
मैंने पूछा,“सर,बंदरों को ढोने में गधों को क्या मज़ा आता है?“
भगत सिंह बोले,“यह इन गधों का प्राक्रतिक गुण है. किसी अपने स्तर के आदमी को ढोना पड जाए तो ये गधे बहुत ही विनम्र और दीन यानि गधे ही नज़र आते हैं.लेकिन वही गधा किसी थानेदार का सामान ढो ले तो खुद को थानेदार समझ अकडकर चलने लगता है.“
अंकल जी, सच कहूं तो फोटो की असलियत जानकर अब मेरी 1000 तो क्या एक रूपया पाने की तमन्ना भी नहीं रही.लेकिन भगत सिंह ने जो शीर्षक बताया है,लिख कर भेजूंगा जरूर.मैं यह भी जानता हूं कि अखबार का संपादक मेरा यह शीर्षक पढ कर मुझे पागल समझेगा.कसूर उसका भी नहीं क्योंकि भगत सिंह संपादक के सपनों में आजकल नहीं आते. उनके सपनों में तो बिल्कुल नहीं जो स्वपन दिखने वाली सुंदरियों के आधे नंगे फोटो छापते रहते हैं और खुश होते रहते हैं कि नारी को सम्मान दे रहे हैं.
वैसे अंकल जी,क्या ऐसा नहीं होना चाहिए कि भगत सिंह कम से कम, अध्यापक,नेता और मीडिया वालों के सपनों में तो अवश्य ही आएं
आपका क्या ख्याल है?
आपका अपना बच्चा
मन का सच्चा
अकल का कच्चा
प्रदीप नील
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