मंगलवार, 8 नवंबर 2011

”नो स्नान-नो मतदान“

कल हमारे नेता राम औतार ने मुझसे कहा“ अन्ना के भतीजे, सुन,मैं चुनाव-सुधार अभियान में योगदान देना चाहता हूं,इतिहास में दर्ज़ कर लेना. अपने अंकल से बोलना कि मेरे सुझाव ये हैं :
(1).तीसरी क्लास का बच्चा भी जानता है कि ”नेता” शब्द पुलिंग है और ”जनता” स्त्रीलिंग. जनता नाम की लडकी को उम्मीदवार नाम के 10-15 लडकों में से किसी एक को पसंद करना होता है. इस प्रकिया का नाम चुनाव नहीं बल्कि ”स्वयंवर” है. अतः सबसे पहले इसका नाम बदला जाए.
(2).कुछ मतदाता पैसा हमसे लेते हैं,वोट किसी और को दे आते हैं. यह “ साई और को,बधाई किसी और को“ टाइप भ्रष्टाचार  बंद होना चाहिए. इसके लिए बिल लाया जाए.
(3). चुनाव के वक्त कुछ लोग घोषणा  कर देते हैं कि उनका जब तक अमुक  काम पूरा नहीं होगा,वे मतदान नहीं करेंगे.यह व्यवहार उस बुआ जैसा है जो भतीजे की शादी में रूठ जाती है.
फूफाओं से कहिए कि ऐसी बुआओं पर लगाम लगाएं.
(4). चारों तरफ “स्वच्छ“चुनाव प्रकिया पर ज़ोर दिया जा रहा है, लेकिन इधर किसी का ध्यान नही है कि मतदाता बूथ पर नहाकर भी आया है,या नहीं ? पोलिंग अफसर को चाहिए कि मतदाता को सूंघकर,तसल्ली होने के बाद ही वोट डालने दे. आगामी चुनावों का नारा भी सुझा देता हूं ”नो स्नान-नो मतदान“
(5). मतदाता ने मत किसको दिया,इस बात की पूरी गोपनीयता रखी जा रही है. अबे, मैं पूछता हूं कि यह मतदान है या गुप्तदान ? वोटर को वोट डालने का हक है, तो हमें लेने का भी तो है. किस बात का दान ? अगर आप मेरे सुझाव नंबर एक को दोबारा देखें तो दान टाइप कोई और शब्द आप ही बता देंगे.
(6). पोलिंग बूथ अक्सर स्कूलों में बनाए जाते हैं. हमें पढाने वाले गुरू जी रोज कहते थे कि स्कूल के बच्चों और बंदरों में कोई फर्क नहीं होता.स्कूल में घुसते ही मतदाता का मन कैसा हो जाएगा,सोचना ज़रा? भगवान न करे, भेड-फार्म में पोलिंग बूथ हो तो? जब सुधार ही करना है तो सारे बूथ “सुधार-गृह“ में होने चाहिएं. विचार भी शुद्ध  रहेंगे, प्रकिया भी.

बाप रे बाप! अंकल जी, आप भी यह क्या सुधार का झमेला ले बैठे ? मुझे तो नहीं लगता, हम राम औतार का एक भी सुझाव, इस जन्म में लागू कर पायेंगे.
  चिट्ठी आपको इसलिए लिख दी कि कल को कोई यह न बोलने लगे कि ये नेता लोग ही चुनाव सुधार के पक्ष में नहीं हैं.
आपका अपना बच्चा
मन का सच्चा
अकल का कच्चा
प्रदीप नील

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें