रविवार, 10 जून 2012

सुनो अन्ना,
                         मन डोले, मेरा तन डोले

आदरणीय अन्ना अंकल,
  कल मैं भक्तों के हाथों और लातों बुरी तरह पिटा .पर अब सोचता हूं कि गलती तो मेरी ही थी.
असल में हुआ यूं, अंकल जी कि हमारे महल्ले में भजन-कीर्तन का आयोजन हो रहा था . अब थोडे़ बहुत पाप मैं भी कर लेता हूं इसलिए सुधरने के लिए वहां चला गया और पूरी श्रद्धा सहित हाथ जोड़ कर बैठ गया .मंच पर एक बहुत ही सुंदर गायिका प्रकट हो गई तब भी मैंने अपनी आंखें कस कर बंद रखी और परमात्मा में ध्यान लगाने की कोषिष करने लगा .गायिका ने आलाप लिया और गाना षुरू कर दिया ”भोले न्यूं बोले, षिवजी न्यूं बोले... “
और मेरी आंखें खुल गई कि यह तो ” मन डोले, मेरा तन डोले..“ की धुन है .सभी भक्त झूम रहे थे पर मेरा ध्यान गायिका के षब्दों पर लग ही नहीं पा रहा था पुरानी फिल्म ”नागिन“ का मन डोले... गीत याद आ रहा था .
और मैं खड़ा हो गया . मैंने कहा ” आप हमें पाप से दूर ले जाने के लिए भजन गा रही हैं .और खुद धुन चोरी कर रही हैं .क्या सिखाएंगी आप हमें ?“
नतीज़ा यह हुआ कि भजन भूल कर गायिका सन्न खडी़ रह गई .चारों तरफ षोर मच गया . कोई मुझे नषेडी़ कह रहा था, कोई कह था कि रावण का वंषज है जो भक्ति में विघ्न डालने आ गया .और भजन-मंडली का सोचना था कि आजकल सारे ऐसे ही तो गाते हैं और मुझे ज़रूर ही उनके प्रतिद्वंदी ने भेजा है कढी बिगाड़्ने के लिए .बस माईक से एक ही षब्द आया ”मारो“
अंकल जी, अपने देष में ” मारो “ कहने की तो ज़रूरत ही नहीं पड़ती क्योंकि भीड़ में घुस कर मारना तो हमारा मुख्य-धंधा है .तब आपके इस बच्चे की क्या हालत हुई होगी, आप सोच ही सकते हैं .
वैसे अब मुझे अपनी गलती समझ आ रही है . मुझे चाहिए तो यह था कि एक आंख बंद करके मुण्डी हिलाता रहता और भजन को सुनता या देखता रहता . कितना पुण्य मिलता ! पर मुझसे ऐसा नहीं हो पाया इसलिए वहीं पिट गया और पाप की सज़ा पा गया .
अंकल जी, अब भजन-कीर्तन में जाने से डरने लगा हूं .क्या आप थोड़ा पिघला हुआ षीषा भिजवा देंगे ? इसे मैं अपने कानों में भरवा लेना चाहता हूं .
आपका अपना बच्चा,
मन का सच्चा,
अकल का कच्चा
- प्रदीप नील